ज्वार की फसल बहुउपयोगी है। एक तरफ यह आहार के रूप में काम आती है, वहीं इसका उपयोग पशु चारे के लिए भी बहुतायत में किया जाता है। इसके साथ ही ज्वार की फसल कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी इसकी उपज हो जाती है। इसके साथ ही ज्वार कुछ समय के लिये भूमि में जलमग्नता भी सहन कर सकती है। तो आईए आज जानकारी लेते हैं ज्वार की फसल के बारे में…

  1. मिट्टी

ज्वार की फसल के लिए मटियार, दोमट उपयुक्त होती है। इस मिट्टी में ज्वार की फसल लेने से फसल काफी अच्छी होती है और गुणवत्ता भी सर्वोत्तम रहता है। लेकिन ध्यान रखें मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त पाया गया है।

  1. बोआई का समय

ज्वार की फसल को मानसून आने के 10 से 15 पहले बोआई कर लेनी चाहिए। क्योंकि देखा गया है कि सूखे में बोनी करने से उपज में अच्छी वृद्धि होती है। इसके साथ ही कीट और पतंगों का प्रकोप कम देखा गया है। सूखे में बोनी के लिये कीट नाशक दवा जैसे क्लोरोपायरीफास 2 प्रतिशत चूर्ण का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से भुरकाव करना आवश्यक है।

  1. तैयारी

ज्वार की फसल बोने से पहले जमीन को अच्छी तरह भूरभूरी कर पाटा चलाकर बोनी हेतु तैयार करना चाहिये।

  1. बीजोपचार

ज्वार की फसल बोने से पहले बीजोपचार काफी जरूरी होती है। इसके लिए आपको आवश्यक उपाय करना चाहिए। फफूंद नाशक दवा थायामिथोक्सेम 70 डब्ल्यू. एस. की 3 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें।

5. खाद एवं उर्वरक

जैसा कि आपको बता ही होगा कि फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग काफी अच्छा होता है। इसलिए ज्वार की अच्छी उपज के लिए 80 किलो ग्राम नत्रजन, 40 किलो स्फुर, तथा 40 किलो ग्राम पोटाश प्रति हेक्टर देना चाहिये।

  1. खरपतवार से सुरक्षा

अन्य फसलों की भांति ही ज्वार की फसलों को खरपतवार से सुरक्षित करना आवश्यक है। रासायनिक नियंत्रण में एट्राजीन 0.5-1.0 किलो प्रति हेक्टर सक्रिय तत्व को 500 लीटर पानी में मिलाकर बोनी के पश्चात एवं अंकुरण के पूर्व छिड़काव करें। इसके साथ ही निंदाई और गुड़ाई भी आवश्यक है।

  1. कीटों से सुरक्षा

ज्वार की फसल में तना छेदक मक्खी यानि शूट फलाय, तना छेदक इल्ली यानी स्टेम बोरर और भुट्टो के कीट का प्रकोप देखा गया है। इसलिए इनसे सुरक्षा करना आवश्यक है। तना छेदक मक्खी से बचाव के लिए बीज के नीचे फोरेट 10 प्रतिशत दानेदार कीट नाशक 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टर के मान से देवें। तना छेदक इल्ली से बचाव के लिए, पौधे जब 35 दिनों की अवस्था के हों, तब पत्तों में कार्बोफयुरान 3 प्रतिशत दानेदार कीट नाशक के 5 से 6 दाने प्रति पौधे की मात्रा में डालें।

  1. रोग

पौध सडऩ अथवा कंडवा का नियंत्रण बीज को कवकनाशी दवा से उपचारित करने से संभव है। ज्वार की नई किस्में लगभग 95 से 110 दिनों में पकती है, दाने पकने की अवस्था में वर्षा होने से दानों पर काली अथवा गुलाबी रंग की फफूंद की बढ़वार दिखाई देती है। इस रोग के सफल नियंत्रण के लिये यदि ज्वार फूलने के समय वर्षा होने से वातावरण में अधिक नमी हो तो डाईथेन -एम.45 (0.3 प्रतिशत) के मिश्रण के घोल का छिडकाव तीन बार भुट्टो पर करना चाहिये ।

  1. कटाई और भंडारण

जब ज्वार की फसल पक जाए तो कटाई कर इसके भुट्टो का अलग कर देना चाहिए। ध्यान रखें पौधों की भुट्टों से अलग कर रख लेना चाहिए। साथ ही बाकी बचे हिस्सों को बचाकर रखें, ये जानवरों के चारे के काम आता है। दानों को सुखाकर जब नमी 10 से 12 प्रतिशत हो तब भंडारण करना चाहिये।