पीढिय़ों से रागी आदिवासी इलाकों में निवासरत लोगों का एक प्रमुख खाद्यान्न हुआ करता था। किन्तु समय के साथ इसके उपभोग में कमी आने लगी, लेकिन आज शासन-प्रशासन की योजनाओं से रागी की खेती को पुनर्जीवन मिल रहा है। राज्य शासन द्वारा राजीव गांधी किसान न्याय योजना के अंतर्गत अन्य फसलों को प्रोत्साहन देने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। जिससे रागी का रकबा बढ़ रहा है। रायगढ़ में भी रागी के रकबे में विस्तार हुआ है। जिले के लैलूगा, धरमजयगढ़, घरघोड़ा, तमनार एवं खरसिया जैसे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कई पीढिय़ों से रागी की खेती करते रहे है। यही कारण है कि फसल के उत्पादन और विशेषता से अनभिज्ञ नही थे। लेकिन बाजार मेें उचित मांग और मूल्य नही होने से इसका रकबा सीमित हो चुका था। किन्तु आज शासन-प्रशासन से मिले प्रोत्साहन से जिले में खरीफ 2021-22 में लगभग 1680 हेक्टेयर में रागी की फसल ली जा रही है। जिसमें से एक तिहाई से अधिक रकबा सिर्फ लैलूंगा विकासखण्ड में है। यहां पिछले खरीफ वर्ष में रागी की पैदावार नगण्य रही। वहीं इस खरीफ वर्ष में लैलूंगा में किसान 609 हेक्टेयर में रागी की फसल ले रहे है। इससे लैलूंगा को आज रागी विकासखण्ड की एक नई पहचान मिल रही है।
पौष्टिक और खुबियों से भरी रागी सुपोषण की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। प्रदेश रागी के फसल को प्रोत्साहन देने के साथ आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से रागी को बच्चों की खुराक में शामिल किया गया है। रागी के उत्पादन को बढ़ावा देने रायगढ़ जिले में 2020-21 में 590 हेक्टेयर का लक्ष्य प्रस्तावित कर शत-प्रतिशत पूर्ति की गई। खरीफ वर्ष 2021 में रकबे में विस्तार करते हुए। जिले में कुल 1680 हेक्टेयर क्षेत्र में कृषकों द्वारा रागी की फसल उत्पादन किया जाना प्रस्तावित है। जिले के विकासखंड लैलंूगा में रबी वर्ष 2020-21 में 57 हेक्टेयर क्षेत्र में कृषकों द्वारा रागी का फसल लिया गया था। जिससे किसानों को 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रागी फसल का उत्पादन मिला था। खरीफ वर्ष 2021 में 609 हेक्टयर में कृषकों द्वारा रागी की फसल लिया गया है। कलेक्टर श्री सिंह द्वारा जिले में कृषकों को फसल प्रोत्साहन के लिए समर्थन मूल्य के अतिरिक्त प्रति क्विंटल 1100 रूपए अधिक में क्रय करने की व्यवस्था की गई है। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों से रागी की फसल सीधे आंगनबाड़ी केन्द्रों के लिए उपलब्ध करायी जा रही है। जिले में खरीफ वर्ष 2021-22 में डीएमएफ मद से 1680 हेक्टयर क्षेत्र के लिए 200 क्विंटल रागी बीज का भंडारण करवाया गया है। फसल का समर्थन मूल्य से अधिक राशि मे क्रय किए जाने से खरीफ वर्ष 2021-22 में कृषकों द्वारा नगद रागी बीज क्रय कर फसल लेने के लिए उत्साहित है। समर्थन मूल्य से 1100 रूपए प्रति क्ंिवटल से अधिक 4500 रूपए प्रति क्विंटल में जिले से कुल 39 क्ंिवटल रागी 01 लाख 75 हजार रूपए मूल्य का महिला बाल विकास रायगढ़ को विक्रय किया गया। रागी से लड्डू बनाने के जिले के एसएचजी के सदस्यों को उड़ीसा के एक्सपर्ट टीम द्वारा प्रशिक्षित किया गया है। शेष उत्पादित रागी को किसानों द्वारा स्वयं ही 50-55 रूपए प्रति किलो के हिसाब से बाहरी व्यापारियों को बेचा गया। बाजार में अच्छी मांग से किसानों को रागी का अच्छा मूल्य मिल रहा है। जिससे उन्हे आर्थिक लाभ हुआ है और जिले के किसान उत्साहित हैं।
छग : कोदो-कुटकी एवं रागी के मूल्य संवर्धन कार्य से किसानों को मिलेगा अच्छा लाभ
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप वन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा कोदो-कुटकी एवं रागी के बेहतर प्रसंस्करण हेतु भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया गया है। इससे राज्य लघु वनोपज संघ उक्त अनुसंधान संस्थान की तकनीकी का इस्तेमाल करके लम्बे समय तक उपयोग में आने वाली नवीन खाद्य पदार्थों को विकसित करने में सक्षम होगा। इन खाद्य पदार्थों को छत्तीसगढ़ शासन के प्रतिष्ठित ब्रांड ‘छत्तीसगढ़ हर्बल्सÓ के तहत बेचा जाएगा। कोदो और कुटकी का यह मूल्य संवर्धन कार्य छत्तीसगढ़ के किसानों को बेहतर लाभ प्रदान करेगा।
गौरतलब है कि राज्य सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के अधिसूचित क्षेत्र में कोदो-कुटकी एवं रागी को न्यूनतम समर्थन मूल्य में क्रय करने का अहम निर्णय लिया गया है। यह कार्य छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से किया जाएगा। राज्य सरकार द्वारा कोदो और कुटकी एवं रागी जैसे स्थानीय रूप से उगाए गए मिलेट के उत्पादन और प्रसंस्करण में सुधार के लिए निरंतर कार्य हो रहे हैं। ये कदम राज्य में मिलेट की खेती में शामिल किसानों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए हैं। इसमें कोदो-कुटकी की खरीदी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय शामिल है। राज्य सरकार द्वारा लघु वनोपज की खरीदी और प्रसंस्करण में उत्कृष्ट रिकार्ड को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ को कोदो और कुटकी की खरीदी और प्रसंस्करण की जिम्मेदारी दी गई है। इसमें बेहतर प्रसंस्करण कार्य के संपादन के लिए राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान के साथ समझौता ज्ञापन किया गया है।
इस संबंध में प्रबंध संचालक राज्य लघु वनोपज संघ संजय शुक्ला ने बताया कि छत्तीसगढ़ में कोदो-कुटकी एवं रागी सामान्यत: वनों के आस-पास निवासरत ग्रामीणों के द्वारा उगाया जाता है। इसके पहले समर्थन मूल्य नहीं होने के कारण इन उपजों का सही दाम वनांचल के किसानों को नहीं प्राप्त हो रहा था। चूंकि अधिकांश किसान जो कोदो-कुटकी एवं रागी का उत्पादन करते हैं, मुख्यत: वनोपज का भी संग्रहण करते हैं। अतएव इन उपजों की खरीदी एवं मूल्य संवर्धन का कार्य राज्य लघु वनोपज संघ को सौंपा गया है। भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक इकाई है और यह मिलेट उत्पादन तथा प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता रखता है।