चुकंदर यानी बिट की खेती के लाभ और महत्ता
चुकंदर यानी बिट की खेती के लाभ और महत्ता

चुकंदर यानी बिट की हर मौसम में खास मांग बनी रहती है। इसके पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण इसका उपयोग है। चुंकदर यानी बिट का मुख्य उपयोग मुख्यत: सलाद और जूस में किया जाता है। चुकंदर में शर्करा, प्रोटीन, मैग्नीशियम, कैल्सियम, पोटेशियम, फास्फोरस, आयोडीन, आयरन, मैगनीज, विटामिन सी, बी-1 तथा बी- 2 भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह रक्त की कमी दूर करने में काफी मददगार है। इसलिए लोग इसका जूस पीने पसंद करते हैं वहीं रक्त की कमी से जूझ रहे लोगों को इसके सेवन की सलाह भी दी जाती है। तो चलिए आज हम बात करते हैं चुकंदर की खेती के बारे में…

1. जलवायु
चुकंदर ठंड के मौसम की फसल है। क्योंकि इसके लिए तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस आदर्श माना गया है। वहीं कहा जाता है कि तापमान बढऩे से इसकी जड़ों में चीनी की मात्रा बढ़ती जाती है। इसलिए पैदावार के समय जलवायु नियंत्रित होना आवश्यक है।

2. मिट्टी
चुकंदर की खेती हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन यदि बलुई या दोमट मिट्टी हो तो सबसे अच्छा है। वहीं आपको बता दें कि इसे लवणीय मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है, बस मिट्टी का पीएच मान 6 और 8 के बीच हो।

3. ऐसे करें तैयारी
चूंकि चुकंदर जड़ों की फसल है। इसलिए खेत की तैयारी करते समय इस बात का अवश्य ध्यान देना चाहिए कि मिट्टी ज्यादा से ज्यादा भुरभुरी हो, इसलिए यदि मिट्टी रेतीली हो तो 3 जुताई, चिकनी हो तो 5 जुताई आवश्यक है। ताकि मिट्टी अच्छी तरह भुरभुरी हो जाए। फिर छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर बीज की सीधी बुआई करें, लेकिन ध्यान रखें बीज बोते समय एक निश्चित अंतराल जरूर हो।

4. किस्में
चुकंदर की प्रमुख किस्मों में डेट्रोइट डार्क रेड, क्रिमसन ग्लोब, अर्ली वंडर, क्रहसबे इजप्सियन और इन्दम रूबी क्वीन आदि हैं।

5. सिंचाई
चुकंदर की प्रति एकड़ कम से कम 3 हजार और अधिक से अधिक 5 हजार पौधे लगाए जा सकते हैं। लेकिन लाइन से लाइन की दूरी और पौधों से पौधों की दूरी का खास ख्याल रखें। चुकंदर में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। पहली दो सिंचाई बुआई के 15 से 20 के अंतराल पर करें। उसके बाद 20 से 25 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहना पर्याप्त है।

6. बोआई का समय
चुकंदर की बोआई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर और नवंबर है।

7. खाद एवं उर्वरक
चुकंदर की खेती में उर्वरक की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर आपको तय करनी है। इसके साथ ही एक एकड़ में कम से कम 13 क्विंटल के अनुमान से गोबर खाद अवश्य डालें। साथ ही सामान्यत: यूरिया 50 किलोग्राम, डी ए पी- 70 किलोग्राम और पोटाश 40 किलोग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग करना चाहिए।

8. खरपतवार से सुरक्षा
हर फसल की भांति इसमें भी खरपतवार की संभावना बनी रहती है। खरपतवार हर फसल के साथ उग आते हैं और मिट्टी से भरपूर पोषक तत्वों का उपयोग कर पौधों के विकास को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए समय-समय पर खरपतवार की निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। रासायनिक रूप से खरपतवार नियंत्रण के लिए, 3 लिटर पेंडीमिथेलिन को 800 से 900 लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर फसल बुवाई से 2 दिन तक नम मिट्टी में छिड़काव करें।

9. कीटों से रक्षा
चुकंदर में पत्ती काटने वाला कीड़ा आमतौर पर लगता है। जो पत्तियों को काट कर तने से अलग कर देता है। इसलिए इससे बचाव के लिए मेटासिस्टाक्स या मैलाथियान छिड़काव करें। वहीं पत्तियों में लगने वाले धब्बा रोग से बचाव के लिए फफूंद नाशक का छिड़काव करते रहना चाहिए। इसके अलावा चुकंदर की जड़ों में रूट रोग भी देखा गया है। जो जड़ों में लगकर जड़ों को खराब कर देता है।