भाजियों में मुख्यत: पालक और लाल के बाद यदि किसी का जिक्र होता है तो वह है चौलाई भाजी। चौलाई भाजी का स्वाद काफी अच्छा होता है। इसलिए लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ ही इसमें कई प्रकार के पौष्टिक तत्व भी पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। चौलाई का वानस्पतिक नाम ऐमारेन्थस ट्राईकलर है। चौलाई गर्म मौसम में उगाये जाने वाली एक पत्तियों वाली सब्जी है, जिसे भारत के अलावा दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका, दक्षिणी पूर्वी एशिया, पश्चिम अफ्रीका और पूर्वी अफ्रीका में भी उगाया जाता है। तो चलिए आज हम बात करते हैं चौलाई भाजी की खेती और इसके व्यापारिक लाभ के बारे में…
- जलवायु
चौलाई भाजी की खेती गर्म वातावरण में ज्यादातर की जाती है। लेकिन इसे अर्ध-शुष्क वातावरण में भी उगाया जा सकता है। लेकिन यदि आप इसकी व्यापारिक खेती करना चाहते हैं और ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना चाहते हैं तो इसे गर्म वातावरण में ही उगाए तो ज्यादा अच्छा होगा। - फायदे
चौलाई भाजी में विटामिन सी भरपूर होता है। इसकी डंडियों और पत्तियों में खनिज, प्रोटीन, कैलोरीज, मैग्नीशियम, सोडियम, लोहा, विटामिन ए, सी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। इसका उपयोग कई रोगों में किया जाता है। इसमें सोना धातु भी पाया जाता है जोकि अन्य सब्जियों में नहीं पाया जाता। चौलाई का लाल साग एनीमिया में बहुत फायदेमंद होता है। - किस्में
वैसे तो चौलाई भाजी की 6 सौ से ज्यादा किस्में पाई जाती है। जो कि बरसात और गर्मी के मौसम में अलग-अलग उगाई जाती है। फिर इसकी कुछ प्रजातियां जो कि बहुतायत में उगाई जाती है। जैसे छोटी चौलाई, बड़ी चौलाई, मोरपंखी, पूसा कीर्ति, पूसा लाल चौलाई, पूसा किरण आदि। - मिट्टी
चौलाई भाजी की खेती वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है, लेकिन अच्छी जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी रेतीली दोमट हो तो ज्यादा अच्छा है। ध्यान रखें मिट्टी का पीएच मान 6 और 7 के आसपास होना चाहिए। चौलाई भाजी की खेती क्षारीय और अम्लीय मिट्टी में बिल्कुल नहीं होती है। इस बात का ध्यान अवश्य रखें। - तैयारी
जुताई करने के बाद मेड़े करके छोटे-छोटी क्यारियां बनाए और उसके बीच में सिंचाई नालियां बनाए जिससे बाद में सिंचाई करने में सुविधा हो। ताकि चौलाई भाजी की फसल बहुत ही अच्छी हो सके। - बोआई
चौलाई भाजी दोनों ही मौसम यानी गर्मी और बरसात में बोई जा सकती है। इसलिए यदि आप गर्मी में इसकी फसल लेना चाहते हैं तो इसकी बोआई फरवरी और मार्च में कर लें। और यदि आप बरसात में इसकी खेती करना चाहते हैं जुलाई में इसकी बोआई कर लें। - सिंचाई
चौलाई भाजी के फसल की सिंचाई मौसम के अनुसार करनी चाहिए। गर्मी में 4 से 6 दिन में तो बरसात के मौसम में सिंचाई न होने पर खेत में नमी बनाए रखते हुए सिंचाई करनी चाहिए। - जल निकासी
चौलाई भाजी के पौधों के आसपास जल निकासी का अच्छा प्रबंध होना चाहिए। नहीं तो फसल प्रभावित हो जाती है। - उर्वरक
प्रति हेक्टर 10 -15 टन गोबर, 50 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फॉस्फोरस, 20 किलो पोटाश डालना चाहिए। - खरपतवार से नियंत्रण
किसी भी फसल को खरपतवार से बचाना आवश्यक होता है। खरपतवार फसल के साथ ही उग आते हैं और मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को सोख लेते हैं। जिससे पौधों की बढ़वार रूक जाती है। इसलिए समय समय पर निंदाई गुड़ाई अवश्य करते रहना चाहिए। चौलाई भाजी में भी यदि खरपतवार दिखाई दें तो निंदाई गुड़ाई अवश्य करें। ताकि पैदावार ज्यादा से ज्यादो हो। - कीट नियंत्रण
चौलाई भाजी कीट व रोगों की आशंका ज्यादा होती है। इसलिए पौधों का समय समय पर निरीक्षण करते रहें और जरूरत पडऩे पर कीट व रोगों के उपचार के लिए जरूरी उपचार करें। - उपज
चौलाई भाजी के पौधे लगाने के महीने भर के भीतर ही तैयार हो जाते हैं। इसलिए उसके कोमल तनों की शाखाओं को ही तोडऩा चाहिए।