ग्वार की खेती
ग्वार की खेती

ग्वार की खेती…मृदा, जलवायु और किस्में

ग्वार का मुख्य रूप से बीज, सब्जी, हरा चारा, हरी खाद एवं ग्वार गम के रूप में प्रचुरता से उपयोग होता है। इसकी खेती असिंचित व बहुत कम वर्षा क्षेत्रों में भी की जा सकती है। इसके बीजों में अत्यधिक प्रोटीन होता है। भारतवर्ष संसार का सबसे महत्वपूर्ण ग्वार उत्पादक देश हैं। तो चलिए आज जानकारी लेते हैं ग्वार की खेती के बारे में…

1. मिट्टी

वैसे तो ग्वार की खेती किसी भी प्रकार के मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन ज्यादा से ज्यादा उत्पादन के लिए समतल चिकनी उपजाऊ मिट्टी तथा उत्तम जल निकास की भूमि सर्वोतम होती है। यदि आपके पास ऐसी मिट्टी की उपलब्धता है तो आप ग्वार की खेती कर अधिक लाभ कमा सकते हैं।

2.जलवायु

ग्वार की खेती मुख्यत: वर्षा ऋतु में की जाती है। इसके लिए नम और गर्म दोनों ही प्रकार की जलवायु उपयुक्त होती है। लेकिन ध्यान रखें ग्वार जब पकने की अवस्था में आ जाए तो अधिक वर्षा से नुकसान हो सकता है, इस बात का खास ध्यान रखा जाना चाहिए।

3. बोआई का समय

ग्वार वर्षा ऋतु की फसल है। अत: इसकी बोआई जुलाई के प्रथम सप्ताह में आसानी से कर सकते हैं। लेकिन यदि आपके पास सिंचाई का साधन उपलब्ध हो तो बोआई जून के अंतिम सप्ताह में भी की जा सकती है।

4. किस्में

ग्वार की मुख्य किस्में- एचजी -365, एचजी- 563, आरजीसी-1066, आरजीसी -1003, दुर्गा बहार, पूसा नवबहार, एच एफ जी -119, एचएफजी -156 आदि है।

5. बीजों का उपचार

बोआई से पहले ग्वार के बीजों का उपचार अवश्य कर लें। इसके लिए कार्बेन्डाजिम + केप्टान (1+2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। इसके बाद उपचारित बीज को विशेष राईजङ्क्षबियम कल्चर की 5 ग्राम. मात्रा प्रति किलो बीज की दर से परिशोधित कर बोनी करें।

6. सिंचाई

ग्वार की फसल में फूल एवं फलियां आने समय सिंचाई का खास ध्यान रखना पड़ता है। खासकर अवर्षा की स्थिति में एक सिंचाई ही पर्याप्त होता है। ध्यान रखें कि ग्वार की फसल ज्यादा पानी सहन नहीं कर सकती है, अत: खेत में यदि ज्यादा पानी भर जाए तो उसके निकासी की व्यवस्था तत्काल कर लेनी चाहिए। अन्यथा फसल खराब होने की संभावना बनी रहती है।

7. खरपतवार नियंत्रण

ग्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए निंदाई गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए।

8. फसल चक्र

अंतवर्तीय फसल के रूप में ग्वार के साथ बाजरा 3:1 के रूप में लाभकारी है। इसके अलावा ग्वार – फलियाँ, ग्वार – चना और ग्वार – सरसों को फसल चक्र के रूप में लगाना उपयुक्त होता है।

9. कटाई

ग्वार की कटाई के समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि आपने ग्वार बीजोत्पादन, सब्जी या चारा उत्पादन, किसके लिए लगाया है। यदि आप बीजोत्पादन के लिए ग्वार की फसल ले रहे हैं  तो जब ग्वार के पौधों की पत्तियाँ सूख कर गिरने लगे एवं 50 प्रतिशत फलियाँ  एकदम सूखकर भूरी हो जाये तब कटाई करें। वहीं सब्जी उत्पादन के लिए उगाई गई फसल से समय-समय पर लम्बी, मुलायम एवं अधपकी फलियाँ तोड़ते रहना चाहिए। इसके अलावा चारे के लिए उगायी गई फसल को फूल आने एवं 50 प्रतिशत फली बनने की अवस्था पर काट लेना चाहिए।

10. कीट प्रबंधन

ग्वार की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले मुख्य हानिकारक कीटों में एफिड, लीफ हॉपर, सफेद मक्खी, पत्ती छेदक और फली छेदक शामिल है। अत: इससे बचाव के लिए उपयुक्त प्रबंधन कर लेना चाहिए।

10. रोग

ग्वार की फसल में जीवाणु पर्ण अंगमारी (ब्लाइट)       का प्रकोप होने पर बीजों को 100 पी.पी.एम. स्ट्रेप्टोसायक्लिन से उपचारित करना चाहिए। पौधों की पत्तियों पर स्ट्रेप्टोसायक्लिन 150 पी.पी.एम. 0.2 प्रतिशत ब्लीटोक्स के मिश्रण का छिड़काव करना चाहिये। आल्टरनेरिया लीफ स्पोट रोग होने पर 15 दिनों के अन्तर से, व बुवाई के 40 से 50 दिनों मे 1.5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से मेन्कोजेब नामक रसायन का छिड़काव करना चाहिए।