रबी मौसम में सिंचित एवं असिंचित क्षेत्र में गेहूं फसल की बुआई में निम्न बातों का ध्यान रखे। खेत की तैयारी करते समय किसान भाई आड़ी तिरछी जुताई कर खेत को समतल करें। पानी की बचत हेतु खेत को 15 से 20 मीटर की लंबाई के प्लाट बनाकर बुआई करें। एक से दो सिंचाई का पानी होने पर अमृता, सुजाता, हर्षिता आदि किस्मों की बुआई करें एवं तीन से छ: सिंचाई का पानी होने पर GW-273, GW-322, GW-366,HI-8381, HI-8498, HI-8759 आदि किस्मों की बुआई करें। आम तौर पर बीज दर 40 किलोग्राम प्रति एकड़ रखें। देरी से बुआई की स्थिति में बीज दर 10 किलोग्राम प्रति एकड़ बढ़ा कर बुआई करे। मृदा और बीज जनित रोगों से बचाव हेतु बीज को 3 ग्राम कार्बोन्डाजाईम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।

गेहूं की बुआई 25 अक्टूबर से 15 नवम्बर के मध्य करे। पौधो के अच्छे विकास और अधिक उपज हेतु बुआई के समय 5 किलो यूरिया, 70 किलोग्राम डी.ए.पी, 40 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश एवं 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट मिलाकर प्रति एकड का प्रयोग करे। बुआई के 20 से 25 दिन बाद पर्याप्त नमी में 40 किलोग्राम यूरिया + 5 किलोग्राम बेन्टोनाईट सल्फर प्रति एकड प्रयोग करे। बुआई के 55 से 60 दिन बाद पर्याप्त नमी में 40 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ का दूसरा बुरकाव (टॉप ड्रेसिंग) करें। अच्छी उपज व गुणवत्ता के लिये दाना भरते समय एक किलोग्राम पानी में घुलनशील उर्वरक एनपीके (00:52:34) प्रति एकड 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। दीमक की रोकथाम हेतु 1 लीटर क्लोरेपाइरीफॅस 20 इसी को 20 किलोग्राम बालू में मिलाकर प्रति एकड की दर से भुरकाव कर हल्की सिचाई करे। कटुआ इल्ली के नियंत्रण हेतु 350 एम.एल क्विनालफॉस 50 इसी प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। रस चूसक कीटों के नियंत्रण हेतु 10 एम.एल. इमिडाक्लोरोप्रिड 17.8 एस.एल. प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे। जड़माहू के कारण पौधो में पीलापन आता है। इसकी रोकथाम हेतु 500 ग्राम कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड 50 एसपी प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कऱे। रतुआ रोग की रोकथाम हेतु 250 एम.एल प्रोपिकोनाजोल 25 इसी प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। कंडुआ रोग की प्रारम्भिक अवस्था में नियंत्रण हेतु प्रभावित बालियों को पोलिथीन में एकत्रित कर उन्हे जला दें। फसल को पाले से बचाने हेतु शाम को हल्की सिचाई करें और रात के समय खेत के चारों तरफ फसल अवशेष, खरपतवार, अपशिष्ट को जला कर धुंआ करें।