गाजर की खेती के लिए सभी प्रकार की मिट्टी उपयुक्त होती है, लेकिन इसकी खेती के लिए रेतीली दोमट भूमि ज्यादा अच्छी है। इसके लिए सर्वोत्तम पी.एच. 6.5 या इसके आसपास माना गया है। बाजार में गाजर की किस्में हैं, लेकिन इसकी उन्नत किस्मों की बात करें तो इसमें नैन्टिस, पूसा मेघाली, पूसा रुधिर, पूसा आंसिता के साथ ही पूसा केसर, पूसा यमदग्नि, चैटेनी, इंपरेटर एवं संकर किस्में आदि हैं। गाजर की खेती करने से पहले पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 बार कल्टीवेटर चलाकर खेत को समतल कर लें। इसमें गोबर की खाद या कम्पोस्ट 150 क्ंिवटल, नत्रजन 75 किलो प्रति हेक्टेयर आवश्यक है।
वैसे तो गाजर की बोआई उसकी किस्मों पर निर्भर है। लेकिन फिर यदि आप इसकी बोआई अगस्त से नवंबर महीने में करते है, तो उपयुक्त होगा। और एक हेक्टेयर में गाजर के लिए 5 से 6 किलो बीज जरूरी है। गाजर को क्यारियों या डोलियों में बोआई करते समय पौधों की आपस में पर्याप्त दूरी में रखें। गाजर बोने के बाद तुरंत सिंचाई कर लें। इसके बाद 3 से 4 दिन में दूसरी बार हल्की सिंचाई करें। उसके बाद आप 10 से 15 दिन के अंतराल में नियमित सिंचाई करते रहें। गाजर की फसल में खरपतवार भी उग आते हैं। जिसको निकालना बहुत जरूरी होता है। नहीं तो ये मिट्टी से पोषक तत्वों को खींच कर पौधों की बढ़वार रोक देते हैं। साथ ही रासायनिक खरपतवार नाषक जैसे पेन्डिमीथेलिन 30 ई.सी. 3.0 कि.ग्रा. 1000 ली.पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 48 घंटे के अन्दर प्रयोग करने पर प्रारम्भ के 30-40 दिनों तक खरपतवार नहीं उगते हैं। गाजर में कई प्रकार की कीट व रोग लगने की संभावना होती है। इसलिए इसके नियंत्रण के समय-समय पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। गाजर में गाजर की बीविल नामक कीट के नियंत्रण के लिए मैलाथियान 50 ई. सी. की 2 मिली. मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसके साथ ही आद्र्रगलन के कारण बीज के अंकुरित होते ही पौधे संक्रमित हो जाते है। तने का निचला भाग जो भूमि की सतह से लगा रहता है, सड़ जाता है। फलस्वरूप पौधे वहीं से टूटकर गिर जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को बोने से पूर्व कार्बेन्डाझीम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।