पपीते की खेती…
हल्के, छोटे और आसानी से उगने वाले पेड़ में पपीते का नाम आता है। इसके फल में कई आकार के होते हैं, जैसे गोलाकार अथवा बेलनाकार, कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने के बाद पीले रंग के हो जाते हैं। फलों के अन्दर काले धूसर रंग के गोल मरिच जैसे बीज रहते हैं। इस पौधे के किसी भी भाग में हल्का खरोंच आने पर भी दूध जैसा पदार्थ निकलने लगता है, जिसको आक्षीर कहते हैं। इसके साथ ही पपीते के फल में काफी मात्रा में मिनरल, विटामिन, प्रोटीन, एनर्जी आदि पाए जाते हैं। इसके साथ ही पपीता बहुत सारे रोगों के लिए फायदेमंद साबित होता है। तो चलिए आज जानकारी लेते हैं पपीते की खेती के बारे में…
1. मिट्टी
पपीते की फसल वैसे तो किसी भी प्रकार की मिट्टी में ली जा सकती है। लेकिन यदि हल्की दोमट या दोमट मिट्टी में इसकी खेती की जाए तो यह बहुत ही अच्छा होता है। लेकिन ध्यान रखें मिट्टी का पीएच मान 6.5-7.5 होने के साथ ही इसमें जल निकासी की भी उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए।
2. जलवायु
पपीता एक उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली फसल है। इसलिए इसकी खेती के लिए तापमान 10-26 डिग्री सेल्सियस तक रहे तो बहुत ही अच्छा है। क्योंकि इसी तापमान में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। पपीता के बीजों के अंकुरण हेतु 35 डिग्री सेल्सियस तापमान सर्वोत्तम होता है। ठंड में रात्रि का तापमान 12 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर पौधों की वृद्धि तथा फलोत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
3. किस्में
पपीते की खेती औद्योगिक रूप करने के लिए इसकी पपेन किस्में सी. ओ- 2 ए सी. ओ- 5 एवं सी. ओ- 7 लगाई जा सकती है।
पारम्परिक पपीते की किस्में :- पारंपरिक पपीते की किस्मों के अंतर्गत वाशिंगटन, मधुबिन्दु, हनीड्यू, कुर्ग हनीड्यू , को 1, एवं 3 किस्में और नई संकर किस्मों में पूसा नन्हा, पूसा डेलिशियस, सी. ओ- 7 पूसा मैजेस्टी, सूर्या आदि प्रमुख है।
4. खेत की तैयारी
खेत की तैयारी मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर 2-3 बार कल्टिवेटर या हैरो से जुताई करें। पूर्ण रूप से तैयार खेत में 45 गुणा 45 गुणा 45 सेमी आकार के गड्ढे 2 गुणा 2 मीटर (पंक्ति – पंक्ति एवं पौध से पौध )की दूरी पर तैयार करें।
5. सिंचाई
पपीते की अच्छी पैदावार के लिए सिंचाई उपयुक्त होनी चाहिए। क्योंकि इसकी मिट्टी में नमी का स्तर बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। इसलिए ठंड के मौसम में 10 से 15 दिन और गर्मी के मौसम में हफ्ते में कम से कम दो बार सिंचाई अवश्य करें। सिंचाई की आधुनिक विधि ड्रिप तकनीकी अपनाएं।
6. कीट प्रबंधन
पपीते में लगने वाले कीटों से सुरक्षा करना बहुत जरूरी है। इसमें प्रमुख रूप से ये कीट लगते हैं। अत: इनसे सुरक्षा जरूरी है।
(अ) एफिड- इस कीट के शिशु तथा प्रौढ़ दोनों पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं। तथा पौधे में मौजेक रोग के वाहक का कार्य करते हैं। इसके लिए मिथाइल डेमेटान या डायमिथोएट की 2 मिली मात्रा/ ली. पानी में मिलाकर पौध रोपण पश्चात् आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतर से पत्तियों पर छिड़काव करें।
(ब) लाल मकड़ी- यह पपीते का प्रमुख कीट है जिसके आक्रमण से फल खुरदुरे और काले रंग के हो जाते है। तथा पत्तियाँ पर आक्रमण की स्थिति में फफूंद पीली पड़ जाती है। इससे सुरक्षा के लिए पौधे पर आक्रमण दिखते ही प्रभावित पत्तियों को तोड़कर दूर गढढे में दबाऐं। वेटेबल सल्फर 2.5 ग्राम/ ली. या डाइकोफॉल 18.5 ईसी की 2.5 मिली या ओमाइट 1.5 मिली मात्रा/ ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
7. रोग
पपीते की फसल में तना गलन (तने तथा जड़ के गलने की बीमारी ), डम्पिंग ऑफ (आर्द गलन ), रिंग स्पॉट वायरस, लीफकर्ल जैसे रोग लगते हैं।
(स) रिंग स्पॉट वायरस – यह रोग विषाणु (माहू) द्वारा फैलता है। इस रोग के गंभीर आक्रमण की स्थिति में 50-60 प्रतिशत तक हानि हो जाती है।
(द) लीफकर्ल – यह भी विषाणु जनित रोग है जो कि सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है जिस कारण पत्तियाँ मुड़ जाती है इस रोग से 70-80 प्रतिशत तक नुकसान हो जाता है। इससे बचाव के लिए स्वस्थ पौधो का रोपण करें। रोगी पौधों को उखाड़कर खेत से दूर गढढे में दबाकर नष्ट करें। सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु अनुसंशित कीटनाशक का प्रयोग करें।
खेती में कुछ नया करने की चाहत ने दिखाई राह…लगाया पपीते का पेड़ और बन गया धनवान…
रायगढ़ जिले के पुसौर विकासखंड के जतरी गाँव के किसान हैं, श्री खेमराज पटेल। खेती किसानी के काम में परम्परागत कृषि को अपनाया हुआ था और मुख्यत: धान की खेती करते थे। खेती किसानी में ही कुछ अलग करने का विचार आया तो उद्यानिकी विभाग से सम्पर्क किया और वहां से मिली जानकारी के आधार पर पपीते की खेती करने का मन बनाया।राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत उन्हें डेढ़ हेक्टेयर में पपीता अनुदान 45 हजार रुपये तथा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना एक हेक्टेयर में ड्रिप संयंत्र लगाने के कुल लागत का 50 प्रतिशत 64 हजार 500 रुपये सहित कुल 01 लाख 9 हजार 500 रुपये का अनुदान दिया गया। विभाग से मिले संसाधनों की सहायता से नवम्बर 2019 में श्री खेमराज ने लगभग 1400 पौधे अपने खेत में लगाये।
ड्रिप सिंचाई की सुविधा थी तो उसी पद्धति से सिंचाई कर पपीते की खेती का काम आगे बढाया। चर्चा करने पर इतनी जानकारी देने के बाद खेमराज मुद्दे की बात बताते हैं, कि शुरुआत में यह सोच कर पपीता लगाया कि खेती में कुछ नया किया जाये। लेकिन आज लगभग 10 महीने बाद उनके विचार बदल गए हैं वे कहते हैं कि गैर परम्परागत खेती खासकर फल और सब्जी जैसे कैश क्रॉप को लगाने से तो धान की खेती से कहीं ज्यादा मुनाफा है।
खेमराज बताते हैं कि वो अभी तक वो लगभग 110 क्ंिवटल पपीता बेच चुके हैं जिनसे उन्हें 2.30 लाख की आय हुई है और अभी भी लगभग 50 क्ंिवटल फसल बेचने के लिए खेत में तैयार है। वो कहते हैं कि मैंने जितने एरिया में पपीता लगाया है उतने से किसान को एक फसल में लगभग 4 से 5 लाख की आय मिल जाएगी। जिसमें से लागत को निकालकर किसान आसानी से 3 लाख रूपया तक शुद्ध मुनाफा कमा सकता है। उन्होंने आगे बताया कि पहली दफा खेती करने से खरीददार और मार्केट तक पहुँच बनाने के लिए थोड़ी मेहनत करनी होती है। एक बात सप्लाई चेन बन जाने से उसकी भी समस्या नहीं रहती है। खेमराज अभी रायगढ़ और बिलासपुर के व्यापारियों को पपीता सप्लाई कर रहे हैं। उनकी इस सफलता को देख क्षेत्र के अन्य किसान भी अब बागवानी फसलों की खेती की ओर अपनी रूचि दिखा रहे है।