खिरे की खेती
खिरे की खेती

खीरा का उपयोग सलाद के रूप में बहुतायत होता है। इसके अलावा सब्जियों में इसका नाम काफी शुमार है। लोग खीरे का रायता या अचार भी बनाते हैं।  तो चलिए आज हम बात करते हैं खीरे की खेती के बारे में…
जैसा कि आप सभी जानते हैं खीरे की खेती प्राय: देश के सभी राज्यों में की जाती है। लेकिन यदि खीरे की खेती को वैज्ञानिक विधि से की जाए तो ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। वैसे खीरे की खेती के लिए दोमट मिट्टी को सर्वोत्तम माना गया है। इसके साथ ही मृदा में जैविक पदार्थ प्रचुर मात्रा में होना आवश्यक है। नदियों के मध्य की भूमि इसके अगेती फ़सल के लिए अच्छी होती है। वहीं आजकल खीरे की मांग प्राय: हर मौसम में यानी सालभर बनी रहती है। इसलिए इसकी खेती की ओर भी किसान उन्मुख हो रहे हैं। खीरे का फल मोटा, लम्बा एवं बेलनाकार होता है। खीरे को उत्तरी एवं दक्षिणी मैदानों पर उगाया जाता है। इसके अलावा खीरे के बारे कहा जाता है कि इसके सेवन से क़ब्ज़, पीलिया, और अपच जैसी ख़तरनाक बीमारियों से बचा जा सकता है। खीरे का उत्पादन राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, पश्चिमी बंगाल, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, उत्तरपूर्वी राज्यों में सर्वाधिक होती है
खीरे की फसल तैयार होने में ज्यादा से ज्यादा दो महीने या तीन महीने का ही समय लगता है। लेकिन इसकी फसल के लिए प्रकाश व तापमान होना आवश्यक है। अधिक वर्षा व नमी रहने से कीट व रोगों का ख़तरा बढ़ जाता है, इसलिए ऐसे मौसम में इसकी ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है।
वैसे देखा जाता है कि खीरे की बुआई के   लिए तीन तरीके ही प्रयोग में लाए जाते हैं। इसमें भी क्यारी और नदी किनारे गड्ढे बनाकर खीरे की खेती ज्यादातर इलाकों में की जाती है। लेकिन मौसम व मिट्टी की किस्म के अनुसार इसमें सिंचाई करना बेहतर होता है। खीरे की फ़सल में खरपतवार निराई गुड़ाई कर निकाल देना चाहिए। निराई गुड़ाई करने से लताएँ अच्छी बढ़ती है और फलन अधिक होती है। साथ ही खाद पानी देने के साथ ही फ़सल सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि कभी-कभी कीट प्रकोप के चलते भी फसल का उत्पादन अनुकूल नहीं हो पाता।
खीरे की फसल तैयार होने पर आपको 2 से 3 दिन के अंतराल में तुड़ाई करते रहना चाहिए। क्योंकि बहुत अधिक वृद्धि वाले फलों को बाज़ार मूल्य अधिक नहीं मिलता और किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।