बांस के गहने
बांस के गहने

नारायणपुर जिला मुख्यालय में संचालित बांस शिल्प केन्द्र ने कई ऐसे लोगों को आसरा दिया है, जिसे माओवादियों द्वारा उनके गांव, घर से निकाल दिया गया है। घोर नक्सल प्रभावित ओरछा (अबूझमाड़) विकासखंड के ग्राम गुमियाबेड़ा में रहने वाली सीताबाई सलाम जिनके बेटे की हत्या कुछ वर्शो पहले नक्सलियों द्वारा कर दी गयी थी और जिसे गांव से बाहर निकाल दिया था, उसे नारायणपुर आकर सहारा मिला। नारायणपुर में सबसे बड़ी समस्या थी, रोजी-रोटी और रहने के लिए मकान की। यहां आकर सीताबाई ने कुछ दिनों तक मेहनत मजदूरी की और अपना जीवन जैसे-तैसे चलाया। आदिवासी अंचल में रहने के कारण उसे बांस से कुछ सामग्री बनाने का अनुभव था। उसने बांस शिल्प में आकर बातचीत की। बांस शिल्प केन्द्र के प्रबंधक ने उसके हुनर को निखारने के लिए वर्श 2010 में प्रषिक्षण प्रदान किया। प्रषिक्षण प्राप्त करने के बाद सीताबाई ने बांस से बनी चीजों के निर्माण को ही अपने जीविका का साधन बना लिया।

उसने बताया कि नक्सलियों द्वारा उसके पुत्र की हत्या करने के उपरांत वह बहुत ही दुखी थी, लेकिन जीवन जीने के लिए कुछ करना जरूरी था। बांस शिल्प से रोजगार मिलने के बाद वह इसी काम में रम गई। सीताबाई ने बताया कि वह बांस से तैयार होने वाले लेटर बाक्स, पेन स्टैंड, ट्रे, टोकरी, गुलदस्ता, टीव्ही स्टैंड, सोफा, टेबल, कुर्सी आदि बनाती है। आंिदवासी अंचल की कलाकृति इन सामग्रियों में होने के कारण अन्य राज्यों में इन सामग्रियों को अच्छा प्रतिसाद मिलता है। सीताबाई ने बताया कि बांस षिल्प केन्द्र द्वारा षासन की योजना इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत् उसे मकान दिया गया है। इसके साथ ही बांस षिल्प में तैयार सामग्री को बेचने के लिए वह देष की राजधानी दिल्ली, चंडीगढ़, गुजरात, नागपुर, भोपाल सूरजकुण्ड सहित प्रदेष की राजधानी रायपुर और भिलाई, दुर्ग, चित्रकूट सहित प्रदेष में आयोजित होने वाले महोत्सवों में भी दुकान लगाकर अच्छी आय अर्जित कर रही है, जिससे उसे हर महीने लगभग 8 से 9 हजार रूपये की आमदनी हो जाती है। इसके साथ ही तैयार सामग्री को वह बांस षिल्प में भी दे देती है, जिसका उचित मूल्य उसे बांस शिल्प द्वारा दिया जाता है।

(कृषि) आकर्षक और कलात्मक कैसे बनते हैं बांस के गहने…बता रहीं महिलाए

एक ओर जहां सम्पूर्ण विश्व इस समय कोरोना महामारी के संकटकाल के दौर से गुजर रहा है। लॉकडाउन की वजह से लोगों के रोजगार पर प्रतिकूल असर पड़ा है, वहीं जिला प्रशासन की पहल से जिले के स्वसहायता समूहों की महिलाएं विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही हैं। नगरी विकासखण्ड के जबर्रा और धमतरी विकासखण्ड के ग्राम छाती की स्वसहायता समूहों की महिलाएं इन दिनों बांस से आकर्षक व कलात्मक गहने बना रही हैं। खास बात यह है कि इन महिलाओं के द्वारा अपने गांव, बाड़ी के बांस और परम्परागत औजार का उपयोग कर बांस के हस्तनिर्मित गहने बनाएं जा रहे हैं जिसमें झुमके, टॉप्स, चूड़ी, हार आदि शामिल है। बैम्बू क्राफ्ट के तहत निर्मित इन आकर्षक गहनों की मांग भी अब धीरे-धीरे बढ़ रही है।

जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्रीमती नम्रता गांधी ने बताया कि महिलाओं को बांस से गहने तैयार करने का प्रशिक्षण आर्य प्रेरणा समिति के द्वारा दिया जा रहा है, साथ ही संस्था द्वारा गहनों की मार्केटिंग और प्रबंधन में भी महिलाओं का सहयोग किया जा रहा है। बांस से बने गहनों का प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया के अलावा अन्य माध्यमों से किया जा रहा है जिसका बहुत अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है तथा जल्द ही बांस से हस्तनिर्मित, इको फ्रेंडली स्वदेशी राखी बनाने की भी योजना पर समिति द्वारा कार्य किया जा रहा है। संस्था समन्यवक मोहित आर्य ने बताया कि जल्दी इस प्रोडक्ट को मार्केट में पूरी तैयारी के साथ लांच किया जाएगा।