बीते तीन सालों में छत्तीसगढ़ में विभिन्न विभागों एवं शासकीय योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को समूह के माध्यम से रोजगार एवं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की पहल के सार्थक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। गौठानों से जुड़ी लगभग 80 हजार महिलाएं समूह के माध्यम से वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के साथ-साथ अन्य आयमूलक गतिविधियों को अपनाकर करोड़ों रूपए का कारोबार और लाभांश अर्जित करने लगी है।

बलौदाबाजार जिले के ग्राम पंचायत सकरी में दीपज्योति स्व-सहायता समूह ने कुक्कुट पालन व्यवसाय को अपनाकर रोजगार के साथ-साथ अतिरिक्त आय का जरिया हासिल किया है। दीपज्योति महिला स्व-सहायता समूह द्वारा जुलाई 2020 में कुक्कुट पालन कार्य की शुरुआत की गई। समूह की अध्यक्ष सावित्री वर्मा एवं सदस्य शैल वर्मा ने बताया कि पशु चिकित्सा विभाग द्वारा स्व-सहायता समूह को शुरूआती दौर में 100 नग कड़कनाथ के चूजे दिए गए थे। तीन माह के भीतर सभी कड़कनाथ मुर्गे एक किलो वजऩ के हो गए थे। इन्हें  500 रूपये प्रति किलो की दर से बेचने से समूह को 50 हज़ार की आमदनी प्राप्त हुई। कड़कनाथ मुर्गों के रखरखाव, दाना इत्यादि में 10-11 हजार रूपए का खर्च आया। इससे समूह को लगभग 40 हज़ार की शुद्ध आय में प्राप्त हुई। इसके बाद समूह द्वारा काकरेल का पालन शुरू किया गया। वर्तमान में समूह द्वारा 350 नग काकरेल मुर्गे का पालन किया जा रहा है। काकरेल बाजार में 170 से 180 रुपये किलो में बिकता है, जो आय कड़कनाथ मुर्गे से होती थी लगभग वैसी ही आय समूह को काकरेल मुर्गे के पालन से भी हो रही है।

अध्यक्ष ने बताया कि लॉकडाउन के कारण कुक्कुट पालन में व्यवधान आया। अभी दूसरी बार इसके पालन की शुरुआत की गई है। समूह द्वारा अभी दीपावली में 300 नग मुर्गे बिक्री किए गये, जिससे समूह को तकरीबन 51 हज़ार की आय हुई। इसमें 13 हज़ार की राशि रखरखाव एवं चारा दाना में खर्च होने के बाद लगभग 37 हज़ार हजार की बचत हुई है। समूह में 15 महिलाएं हैं। समूह को मुर्गा पालन से प्राप्त होने वाली आय को समूह द्वारा बैंक में जमा किया जाता है, जिसे जरूरतमंद महिलाओं एवं परिवारों को समूह द्वारा ब्याज पर दिया जाता है। ब्याज से प्राप्त होने वाली राशि को भी बैंक खाते में जमा की जाती है। समूह के पास शुरुआत में बैंक खाते में सिर्फ 15हज़ार रुपये थे। आज समूह के बैंक खाते में  लगभग एक लाख रुपये जमा हो गये हैं।

        समूह के सदस्य शैल वर्मा ने बताया कि इस व्यवसाय में किसी प्रकार का घाटा नहीं है। महिला समूह को कुक्कुट पालन व्यवसाय अपनाना चाहिए। इसके लिए किसी विशेष प्रकार के प्रशिक्षण की भी आवश्यकता नहीं है। मुर्गे के बच्चे छोटे रहने पर उन्हें सिर्फ एक माह गुड पानी पिलाना पड़ता है, उसके बाद चूजे अपने आप विकसित होने शुरू हो जाते हैं। थोड़ी बहुत जानकारी लेकर यदि कोई महिला समूह इस व्यवसाय को करता है, तो आसानी से लाभ अर्जित कर सकता है। श्रीमती वर्मा ने अपनी लगन और मेहनत से कम लागत में कुक्कुट दाना का उत्पादन भी शुरू कर दिया है। इससे होने वाले लाभ को देखते हुए अब वह भविष्य में कुक्कुट दाना का व्यवसायिक उत्पादन शुरू करने की तैयारी कर रही है।

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