Aloe vera
Aloe vera

वैसे तो ज्यादातर पेड़-पौधों में औषधीय गुण पाए जाते हैं। लेकिन आज हम बात करते हैं औषधीय गुणों से भरपूर घृतकुमारी यानी एलोवेरा की।  एलोवेरा त्वचा से जुड़ी कई प्रकार की बीमारियों के लिए काफी फायदेमंद होता है। प्राचीन समय से ही बीमारियों के उपचार में इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसके अलावा साबुन बनाने और आयुर्वेदिक औषधी के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल होता है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल से लगभग प्रतिवर्ष 50-60 टन ताजी पत्तियों की प्राप्ति होती है। तो चलिए आज हम बात करते हैं एलोवेरा की खेती के बारे-
मिट्टी एवं जलवायु
एलोवेरा की खेती के लिए किसी खास प्रकार की मिट्टी या जलवायु की आवश्यकता नहीं होता है। क्योंकि प्राकृतिक रूप से इसके पौधे अनउपजाऊ मिट्टी में उगते हैं। इसलिए इसे किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन बुलई दोमट मिट्टी ज्यादा अच्छी है।
खेत की तैयारी और बोआई
एलोवेरा की खेती के लिए खेतों की तैयारी करने से खासकर क्यारियों का निर्माण करने से इसका उत्पादन अच्छा होता है। इससे पहले खेत में एक या दो जुताई कर उसे समतल अवश्य कर लें। फिर क्यारियों में 50-50 सेेंटीमीटर की दूरी पर पौधों को लगाएं। वैसे एलोवेरा की खेती के लिए फरवरी का महीना सबसे बढिय़ा है।
उर्वरक
किसी भी पौधे के अच्छे विकास के लिए उर्वरक की जरूरत होती है। इसलिए एलोवेरा के भी अच्छे उत्पादन के लिए इसमें 10 या 12 टन प्रति हेक्टेयर की मात्रा से गोबर खाद अवशय मिलाएंए। साथ ही  नेत्रजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश भी दें।
सिंचाई
वैसे देखा गया कि एलोवेरा के पौधे अनउपजाऊ भूमि पर भी होते हैं, इसलिए इसे सिंचाई की कोई खास आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन सिंचाई करते रहने से पत्तियों में जैल का उत्पादन एवं गुणवत्ता बरकरार रहती है। इसलिए एलोवेरा के पौधों की सिंचाई भी करते रहें। ज्यादा ना सही लेकिन नमी की कमी होते ही सिंचाई करें।
कीट उपचार
वैसे तो एलोवेरा के पौधों में कीट या रोग कम ही लगते हैं। फिर भी सावधानी बेहद जरूरी है। खासकर इसके पौधों के आसपास खरपतवार निकलते रहते हैं, जिसका उपचार जरूरी है। अन्यथा ये पौधों के बढ़ाव को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कभी-कभी एलोवेरा की पत्तियों एवं तनों के सडऩे एवं धब्बों वाली बीमारियों के प्रकोप को देखा गया है, जो कि फफूंदी जनित बीमारी है। अत: इसका उपचार अवश्य कर लें। इसके अलावा खेत में यदि पानी का जमाव ज्यादा हो तो तुरंत इसके निकासी का प्रबंध कर लें। लगातार पानी भरा होने से इनके पत्ते, तने और जड़ गलना शुरू हो जाते हैं। जिससे पौधों को नुकसान पहुंच सकता है।
लाभ ही लाभ
एलोवेरा की खेती लागत कम और ज्यादा मुनाफा वाली मानी जाती है। क्योंकि  एक बार लगाने के बाद यह 3 से 5 साल तक उपज देती है। साथ ही ये जानवरों से पूरी तरह सुरक्षित रहता है, यानी इसे जानवर नहीं खाते। प्रति फसल प्रति एकड़ लगभग चार सौ क्विंटल एलोवेरा का उत्पादन होता है। जो ढाई सौ रूपये प्रति क्विंटल बिक जाता है। इसकी खेती पूरी तरह से जौविक होती है इसीलिए इस पर अन्य खर्च नहीं होता है।
कटाई
एलोवेरा की पत्तियां 10 से 15 महीने में पूर्ण विकसित हो जाती है। लेकिन ध्यान रखें इसकी ऊपरी एवं नई पत्तियों को छोड़कर निचली एवं पुरानी पत्तियों की पहले कटाई कर लें। इसके बाद लगभग 45 दिन बाद पुन: निचली पुरानी पत्तियों की कटाई करें।