kaddu ki kheti
kaddu ki kheti

आज जरूरतों के हिसाब से हर सब्जियों की मांग बराबर बनी रहती है। खासकर सब्जियों का उत्पादन आजकल किसानों के लिए लाभ का व्यवसाय बनता जा रहा है। सब्जी चाहे बड़े पैमाने पर लें या छोटे पर, लेकिन इसमें सबसे जरूरी होता है। मिट्टी, जलवायु और सही किस्मों का चयन करना, तभी आपको इसके उत्पादन में पर्याप्त आमदनी होगी। अन्यथा नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। फिलहाल, आज हम आपको बताने जा रहे हैं कई पोषक तत्वों से भरपूर कद्दू की खेती के बारे में। कद्दू आजकल हर मौसम में मिलता है और सब्जियों में इसकी खास पहचान भी बनी हुई है। वैसे बीज बोने के 90 से १०० दिन के भीतर इसके फल तैयार हो जाते हैं और सामान्यत: प्रति हेक्टर में 250 से 300 क्विंटल कद्दू की उपज होती है।

सब्जियों के साथ मिठाई भी
कद्दू को वैसे तो सब्जियों के लिए ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है। लेकिन कहीं-कहीं इसकी मिठाई भी बनाई जाती है। खासकर मीठा या पके हुए कद्दू की मिठाई कुछ क्षेत्रों में बड़े चांव से लोग खाते हैं। और आपको एक और खास बात बता दें कि कद्दू में कैरीटोन की काफी मात्रा में पाई जाती है।

फल के साथ फूल और पत्तों की भी उपयोगिता
कद्दू के साथ इसके फूल और पत्तियों की भी अपनी अलग ही उपयोगिता है। खासकर, इसके पत्तों की भाजी बहुत ही स्वादिष्ट होती है। इसलिए कद्दू के साथ-साथ इसकी पत्तियों का भी अपना बाजार है। वहीं अगर हम बात करें कद्दू के उत्पादन के बारे में इसका सबसे ज्यादा उत्पादन बिहार, मध्यप्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और उत्तरप्रदेश में होता है।

जलवायु
वैसे तो कद्दू आजकल हर मौसम में आने लगे हैं। लेकिन आपको बता दें कि ये गर्म जलवायु की फसल है। इसकी खेती के लिए शीतोष्ण और सम-शीतोष्ण दोनों ही जलवायु अच्छी है। वहीं अगर तापमान की बात करें तो इसकी फसलों के लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान उपयु्क्त होता है। लेकिन याद रखें पाले का इसकी फसलों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। और सबसे कुछ ठीक रहा तो कद्दू की फसल 4 महीने में तैयार हो जाती है।

मिट्टी
कदूद् के लिए 5.5. से 6.8 पीएच मान वाली दोमट एवं बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। इसकी खेती के लिए ज्यादा जुताई की जरूरत नहीं है। बस दो बार ही पर्याप्त है।

सिंचाई
वैसे गर्मी वाली कद्दू की फसल में यदि भूमि में नमी न हो तो 8 या 10 दिन के अंतराल में बराबर सिंचाई करते रहना चाहिए। वहीं वर्षाकालीन कद्दू में सिंचाई की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है, लेकिन यदि बारिश ना हो तो सिंचाई  करते रहना चाहिए।

किस्में
वैसे तो कद्दू की कई किस्में बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन अर्का सुर्यामुखी, अर्का चन्दन, पूसा विशवास, पूसा विकास, कल्यानपुर पम्पकिन- 1, नरेन्द्र अमृत आदि किस्मों की खेती ज्यादा होती है। वहीं कुछ विदेशी किस्मों के जैसे पैटीपान, बतर न्ट, ग्रीन हब्बर्ड, गोल्डन हब्बर्ड, गोल्डन कस्टर्ड, और यलो स्टेट नेक आदि भी उपयुक्त हैं।

बोआई का समय
कद्दू को मैदानी क्षेत्रों में साल में दो बार यानी फरवरी-मार्च और जून-जुलाई में उगाया जाता है तो वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च या अप्रैल महीने में इसकी बोआई की जाती है। यदि नदियों के किनारे इसकी खेती कर रहे हैं तो इसकी बोआई दिसंबर महीने में कर सकते हैं।

खाद
कद्दू की अधिक पैदावार के लिए कम्पोस्ट खाद डालना बहुत जरूरी होता है। खेतों में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से गोबर खाद, नीम की खली और अरंडी की खली को अच्छी तरह मिलाकर खेत में आखरी जुताई दें। इससे फसलों का उत्पादन बहुत ही अच्छा होगा।

खरपतवार से बचाव
कद्दू की फसल को खरपतवार से बचाना जरूरी है। नहीं तो मिट्टी के सारे तत्व खरपतवार सोख लेते हैं और फसल को नुकसान हो सकता है।

कीट प्रकोप से रोकथाम
कद्दू की फसलों में लालड़ी कीट का प्रकोप देखा गया है। पौधों पर पत्तियां निकलते ही इसका प्रकोप शुरू हो जाता है। इसकी रोकथाम जरूरी है। वहीं कद्दू में फल की मक्खी का प्रकोप भी होता है। यह मक्खी फलों के अंदर अंडे देती है। इसलिए फल बेकार हो जाते हैं। इसलिए इसकी रोकथाम जरूरी है। कद्दू की फसल को फफूंद के कारण भी चूर्णी फफूंदी रोग होता है। इसके चलते इसकी पत्तियों एवं तनों पर सफ़ेद दरदरा तथा गोलाकार जल जैसा प्रतीत होता है। बाद में पत्तियां पिली पड़कर सूख जाती है।