कुंदरू की खेती…
मुख्यत: सब्जी के रूप में इस्तेमाल होने वाले कुंदरू में कई पोषक तत्वों के साथ ही औषधीय गुण भी होते हैं। कुंदरू में फाइबर, विटामिन-ए और सी, कैल्सियम, फ्लेवोनोइड्स, एंटी बैक्टीरियल और एंटी-माइक्रोबियल, आयरन आदि पाए जाते हैं. इसे खाने से पाचन, कैंसर, मधुमेह, किडनी स्टोन, हृदय रोग और नर्वस सिस्टम से जुड़े रोगों में सहायता मिलती है। इसके साथ ही इससे डिप्रेशन, वजन घटाने में, थकान आदि में भी फायदेमंद है। इसलिए इसकी खेती की जाती है। पहले कुंदरू की खेती एशिया और अफ्रीका के कुछ ही देशों में होती थी। लेकिन इसकी महत्ता को देखते हुए कई देशों में भी इसकी खेती की जाने लगी है। कुंदरू के बारे में कहा जाता है कि एक बार इसकी बेल लग जाए तो 5 साल फर्सत यानी 5 साल तक इसके बेल फल देते हैं। तो आईए आज बात करते हैं कुंदरू की खेती के बारे में…
1. जलवायु
कुंदरू की खेती औसत वर्षा वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु उपयुक्त है। लेकिन जहां सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं वहां आसानी से इसकी खेती की जा सकती है।
2. मिट्टी
कुंदरू की खेती के लिए जीवांशयुक्त रेतीली या दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। वैसे तो इसकी खेती भारी मिट्टी को छोड़कर किसी भी किस्म में की जा सकती है। लेकिन रेतीली और दोमट मिट्टी ही उपयुक्त है। लेकिन ध्यान रखें इसकी लताएं पानी के ठहराव को सहन नहीं कर सकती है, इसलिए जल निकासी का प्रबंध होना चाहिए।
3. किस्में
कुंदरू की दो ही किस्में चलन में हैं- गोल या अंडाकार।
4. बोआई
कुंदरू के पौधों का रोपण सितम्बर- अक्टूबर में कलमों में किया जाता है। 10 मादा पौधों के बीच 1 नर पौधे को लगाने से उपयुक्त फसल प्राप्त होता है।
5. सिंचाई
कुंदरू की पहली सिंचाई कलमों के रोपने के तुरंत बाद की जाती है। उसके बाद आप समय-समय पर सिंचाई कर सकते हैं। ठंड के दिनों में सिंचाई की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है, लेकिन गर्मी के दिनों में 5-6 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
6. खाद और उर्वरक
कुंदरू की खेती में नई शाखाएं आने पर प्रति थाला में 1-2 किलो गोबर, 1 किलो सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट, 1 किलो भू-पावर, 1 किलो माइक्रो नीम, 1 किलो माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट,1 किलो माइक्रो भू-पावर और 1-2 किलो अरंडी की खली को मिट्टी में मिलाकर के प्रति थाला में भर देना चाहिए।
7. रोग
कुंदरू की फसलों में कई तरह के कीड़े-मकोड़े का प्रकोप देखा गया है। इसमें फल की मक्खी, फली भ्रंग या फिर चूर्णी फफूंदी का प्रकोप देखा गया है। इसलिए इन सब समस्यायों के रोकथाम के लिए गौमूत्र या नीम का काढ़ा को माइक्रो झाइम के साथ मिश्रण बना कर छिड़काव करना चाहिए।
8. कटाई
इसकी औसत उपज 240 क्विंटल प्रति हेक्टर है। कुंदरू मार्च-अप्रैल के महीने में ही उपज देने लगती है, जो अक्टूम्बर तक चलता है। इसे पकने के बाद ही तोडऩा चाहिए।