सब्जी के साथ-साथ आलू के अन्य प्रकार के व्यंजन पसंद किए जाते हैं। हर जगह इसकी उपलब्धता रहती है। चाहे वो रसोई घर में हो, होटल में या फिर चौपाटी में। इसलिए तो इसे सब्जियों का राजा कहा जाता है। वैसे आलू की खेती भी कम समय में ज्यादा मुनाफा देने वाली मानी जाती है। इसलिए प्राय: किसान इसकी ओर उन्मुख होते हैं। और परंपरागत खेती छोड़ इसकी खेती में ही लग जाते हैं। वैसे देखा जाए तो आलू की खेती कोई नई बात नहीं है, इसे हजारों साल पहले से ही उगाया जा रहा है। आलू की अच्छी पैदावार सामान्य किस्मों में 300 से 350 क्विंटल तथा संकर किस्में 350 से 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। हमारे देश में प्राय: सभी राज्यों में इसकी खेती की जाती है, लेकिन उत्तरप्रदेश इसमें पहले नंबर पर है। तो आइए जानते हैं आज आलू की खेती के बारे में-
जलवायु
अब सबसे ध्यान देने योग्य बात है कि आलू की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु की आवश्यकता होती है। आलू की खेती के लिए कहा जाता है कि मध्यम शीत जलवायु की आवश्यकता होती है। वैसे मैदानी क्षेत्रों में शीतकाल में इसकी खेती की जाती है। क्योंकि आलू की वृद्धि एवं विकास के लिए अधिकतम तापमान 15- 25 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए। अंकुरण के लिए 25 डिग्री सेल्सियस और संवर्धन के लिए 20 डिग्री सेल्सियस के साथ ही और पकने समय विकास के लिए 17 से 19 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
मिट्टी
वैसे तो आलू की खेती के लिए रेतीली दोमट या सिल्टी दोमट दोनों ही प्रकार की भूमि उपयुक्त होती है, लेकिन इसे क्षारीय मृदा में भी उगाया जा सकता है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि आलू के कंद मिट्टी के अंदर ही तैयार होते हैं, इसलिए मिट्टी का भुर-भुरा होना बेहद आवश्यक है। इसलिए इसकी खेती में पलटने से पहले खास तैयारी करनी होती है। बुवाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। आलू के बीज का आकार और उसकी उपज से लाभ का आपस मे गहरा सम्बंध है। इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखना जरूरी है।
खेत की तैयारी
किसी भी फसल की खेती के लिए खेत की तैयारी काफी आवश्यक होती है। आलू की खेती के लिए भी सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में हल से 4 से 5 बार जुताई करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पानी पटाना भी अनिवार्य है। साथ ही अंतिम जुताई के साथ 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से हुई गोबर मिला दें।
बुआई
आलू की बुवाई के समय में कतार का खास ध्यान रखना होता है। ताकि उपज भी पर्याप्त हो और आलू की माप भी कम न हो। उचित माप के बीज के लिए पंक्तियों मे 50 से.मी. का अन्तलर व पौधों में 20 से 25 से.मी. की दूरी रखनी चाहिए। बुआई के समय तापमान 30 -18 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच रहनी चाहीये। अक्टूबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक इसकी बोआई आवश्य कर देनी चाहिए।
सिंचाई
आलू के बेहतर उत्पादन के लिए पहली सिंचाई बुआई के एक सप्ताह बाद और फिर 8-10 दिनों पर नियमित सिचाई जरूरी है। इससे आलू का उत्पादन काफी अच्छा होता है।
आलू में लगने वाले कीट और उपचार
आलू की फसल को दीमक, फंफूद और जमीन, जनित बीमारी से बचाव के लिए बीज उपचारित करने का तरीका कृषि वैज्ञानिकों की सलाह लेकर करते रहना चाहिए, ताकि फसल अच्छी हो सके।