काली मिर्च का इस्तेमाल आमतौर पर खाने का स्वाद बढ़ाने और मसालों के रूप में किया जाता है। जानकारों का मानना है कि हर दिन दो से तीन काली मिर्च आपके शरीर के लिए कई मायनों में फायदेमंद साबित होंगी। वहीं काली मिर्च खाने से अपनी कई बीमारियों का इलाज घर बैठे कर सकते हैं। आयुर्वेद में काली मिर्च को औषधि बताया गया है। काली मिर्च का सेवन करने से सर्दी के मौसम में होने वाली खांसी और जुकाम से राहत मिलती है। जुकाम के कारण बाल झडऩे की समस्या हो जाती है, इससे भी आपको आराम मिलता है। यदि आपके शरीर पर फोड़ा या फुंसी होने की आम समस्या है तो काली मिर्च को घिसकर फोड़े वाली जगह पर लगा लें. इससे आपको कम समय में आराम मिल जाएगा। ये तो हुई काली मिर्च की उपयोगिता की बात तो चलिए आज हम बात करते हैं काली मिर्च की खेती के बारे में…
उत्पादक राज्य
वैसे तो काली मिर्च की खेती देश के कई हिस्सों में की जाती है, लेकिन इसका मुख्य उत्पादन केरल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु है। हमारे देश में इसका उत्पादन औसतन 55-60 हजार टन है।
जलवायु
काली मिर्च की खेती के लिए पश्चिम घाट के उपपर्वतीय क्षेत्र सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। इसलिए ऐसे क्षेत्रों में इसकी खेती बहुत होती है। वैसे काली मिर्च के लिए अच्छी वर्षा और आद्र्रता दोनों जरूरी है। इसकी फसल अधिकतम 40 डिग्री तक तापमान भी सह सकता है।
मिट्टी
वैसे तो काली मिर्च की खेती के लिए विशेष प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। इसे किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से किया जा सकता है। लेकिन फिर भी लाल लैटराइट मिट्टी इसकी खेती के लिए आदर्श है और इसका पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।
किस्में
काली मिर्च की प्रचलित प्रजातियों में पन्न्युर-1, पन्न्युर-3 और पन्न्युर-8, पन्न्युर आईआईएसआर-गिरिमुंडा तथा आईआईएसआर-मलबार एक्सल प्रमुख है।
पौध रोपण
काली मिर्च रोपण की कई विधियां हैं। लेकिन परंपरागत विधि से इसकी खेती ज्यादा की जाती है। इसमें उच्च उपज वाले स्वस्थ पौधों का चयन कर उसके प्ररोह के निचले भाग को मिट्टी में दबाकर रखतें हैं तथा जड़ निकलने तक छोड़ देते हैं। फिर फरवरी-मार्च के महीने में इसकी 2-3 नोडों को काटकर अलग करके प्रत्येक को नर्सरी वेड़ों या पोटिंग मिश्रण युक्त पोलीथीन बैगों में रोपण करते हैं।
रोगों से बचाव
काली मिर्च में फाइटोफथोरा रोग की आशंका ज्यादा होती है। इस रोग के चलते काली मिर्च के पौधों के पत्ते, तना तथा जड़ें काले रंग के हो जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए बोर्डियो मिश्रण (1प्र) का छिड़काव करना चाहिए। वहीं काली मिर्च में कवक के द्वारा होने वाला एन्थ्राकनोज होता है। इससे पत्तों पर भूरे-पीले तथा काले-भूरे रंग की अनियमित चित्तियाँ पड़ जाती हैं। इसलिए इसका बचाव जरूरी है। इसके अलावा पर्ण चित्ती रोग और मूल म्लानी रोग भी काली मिर्च में देखा जाता है।
रोपण
काली मिर्च के पौध रोपण के समय गड्ढों से गड्ढों की दूरी कम से कम 25 सेमी होना चाहिए। रोपण के समय नीम केक, ट्राईकोडरमा हरजियानम तथा 150 रोक फासफेट प्रति गढ्डा की दर से डालना चाहिए। बारिश शुरू होते ही काली मिर्च के पौधे को गढ्डे में अलग-अलग स्थान पर रोपें।
खाद-उर्वरक एवं सिंचाई
पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए काली मिर्च में खाद एवं उर्वरक पर्याप्त मात्रा में डालते रहना चाहिए। वहीं यदि बारिश ना हो तो पौधों में मिट्टी की नमी बरकरार रखने समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। वहीं यदि पर्याप्त बारिश हो तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।