सूरजमुखी की खेती
सूरजमुखी की खेती

सूरजमुखी एक प्रमुख तिलहन है। इसके बीज से तेल बनता है जिसके गुण अनगिनत हैं। सूरजमुखी के बीज में विटामिन बी1, बी3, बी6, मैग्निशियम, फॉस्फोरस, प्रोटीन जैसे बहुत सारे पोषक तत्व हैं। साथ ही सूरजमुखी का प्रयोग आयुर्वेद में कई तरह के दवाईयों के लिए किया जाता है। सूरजमुखी की जड़ मूत्र संबंधी बीमारी में फायदेमंद होने के साथ-साथ दर्दनिवारक के रुप में भी काम करते हैं। इसका तेल उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोगियों के लिए लाभकारी है। तो चलिए आज बात करते हैं सूरजमुखी की खेती के बारे में…

जलवायु
सूरजमुखी की खेती कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है। मप्र में इसका उत्पादन बहुतायत होता है, खासकर मालवा निमाड़ क्षेत्र में, क्योंकि यहां 30 इंच से भी कम वर्षा होती है। यह मूंगफली, मूंग, कपास आदि फसल के साथ उगाई जा सकती है।

मिट्टी
सूरजमुखी की खेती के लिए कोई विशेष प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। इसे हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसे वहां भी उगाया जा सकता है, जहां अन्य किसी प्रकार की फसल नहीं होती है, लेकिन ध्यान रखें कि हल्की भूमि में जिसमें पानी का निकास अच्छा हो इनकी खेती के लिये उपयुक्त होती है।

खेत की तैयारी
सूरजमुखी की खेती के लिए गर्मी के मौसम में भूमि की तैयारी कर लें। वर्षा होने पर पुन: खेत की जुताई करें या बखर चलायें जिससे मिट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी हो जावें।

बोआई
सूरजमुखी की सिंचित क्षेत्रों में खरीफ फसल की कटाई के बाद करना चाहिए। इसकी बोनी के लिए अक्टूबर मध्य से नवंबर महीने के अंत का समय अच्छा होता है। वहीं असिंचित क्षेत्रों में सूरजमुखी की बोनी वर्षा समाप्त होते ही सितंबर माह के प्रथ्म सप्ताह से आखरी सप्ताह तक कर देना चाहिए। बीजों को 4 से 6 सेमी गहराई में लगाना चाहिए। बोनी कतारों में सीडड्रिल की सहायता से अथवा तिफन/दुफन से सरता लगाकर करें।

किस्में-
सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में मार्डन, बी.एस.एच.-1, एम.एस.एफ.एस. -8, एस.एच.एफ.एच.-1, एम.एस.एफ.एच.-4 आदि हैं।

खरतपतवार नियंत्रण
सूरजमुखी की फसल में खरतपतवार नियंत्रण करना आवश्यक हैं। ये खरपतवार मिट्टी से पोषक तत्वों को सोखकर पौध वृद्धि को रोक देते हैं। इसलिए समय-समय पर इसकी निंदाई जरूरी है।

रोग नियंत्रण
सूरजमुखी के पौधों में काले धब्बोका रोग (अल्टनेकरयाब्लाईट), फूल गलन (हैटराट), जड़ तथा तना गलन और झुलसा रोग लगते हैं। इसका उचित प्रबंधन आवश्यक है।

कीट प्रबंधन
सूरजमुखी की फसलों में कटुआसुण्डी कीटों का प्रकोप देखा गया है। इसके उपचार के लिए मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा.प्रति हेक्टेअर की दर से भुरकाव करें। वहीं पत्ते कुतरने वाली लट से बचाव के लिए डायमिथोएट 30 ई.सी. 875 मि.ली. का प्रति हेक्टेअर का प्रयोग करें। तना फली छेदक पत्तों को काटकर फूलों में  खा जाती है, इससे बचाव के लिए मोनोक्रोटोफास 36 डब्लू.एस.सी एक लीटर प्रति हेक्टेअर की दर से प्रयोग करें।