खैजराबुद्धू और पटकुई में बाहर से बुलाये गये थाई अमरूदों को हाईडेंनसिटी प्लानटेशन विधि के द्वारा रोपित किया गया था। आरती स्व. सहायता समूह से जुड़ी श्रीमती पिंकी कुशवाहा, श्रीमती देवी कुशवाहा, धन लक्ष्मी समूह से जुड़ी श्रीमती सरला देवी, जलधारा समूह की बेवी रजक ने अपने खेतों में 130 थाई अमरूदों के पौधों का रोपण किया है। बाजार की मांग और मौसम से उत्पन्न होने वाली रिस्क को देखते हुए इन महिलाओं ने अमरूदों के साथ साथ 150 आम की विभिन्न प्रजातियों का भी रोपण किया है। ये दोनें फलदार पौधों को उन्होंने हाईडेनसिटी प्लानटेशन विधि से लगाया है। एसआरएम संस्था जो सीएफटी पार्टनर के रूप में काम कर रही है। संस्था की ओर से श्री प्रदीप जैन ने ये पौधे उपलब्ध कराये हैं जिसमें ग्राफ्टेड, लंगड़ा, चौंसा, नीलम प्रजाति के आम के पौधे हैं।

आजीविका मिशन की श्रीमती रितु ने इन महिलाओं को पौधरोपण तकनीकी पर प्रशिक्षित किया।  आमतौर पर ग्राफ्टेड प्रजातियां तीसरे साल से फल देना शुरू कर देती हैं। इन प्रजातियों में पौधे का आकार बहुत बड़ा नहीं होता ये थोड़े स्थान पर फेलते हैं। किसान चाहे तो इनके साथ साथ शेड क्रॉप जैसे हल्दी, अदरक और मौसमी भाजी की फसलें भी ले सकता है। फलदार पौधों की धूप छांव में हल्दी और अदरक की बम्पर पैदावार होती है। इन दोनों फसलों में ज्यादा रोग बीमारी नहीं लगती। बल्कि हल्दी के पत्तो को सुखाकर भण्डारित किये गये अनाज के साथ मिला देने पर अनाज में भी कीड़े नहीं लगते।

क्या है हाइडेंसिटी
जिला प्रबंधक कृषि श्री अनूप तिवारी के अनुसार इस विधि में आम, अमरूद और अनार जैसी फसलों का 1 वाय 1 मीटर की दूरी पर रोपण किया जाता है। ग्राफ्टेड प्रजाति के फलदार पौधे इस विधि के लिए उपयुक्त होते हैं। कमजोत के किसानों के लिए फलदार पौधों की खेती करने के लिए ये विधि सर्वोत्तम होती है। इस विधि में फल लेने के बाद पौधे की पू्रनिंग कर दी जाती है। पौधे की लकडिय़ां और पत्ते उसी खेत में बायोमास तैयार करते हैं जो पौधे का भोजन बनता है और जमीन फैण्डली बैक्टीरियल ग्रोथ के कारण उपजाऊ हो जाती हैं। प्रति पौधा 25 से 30 किलो तक उत्तम फल मिलता है।

   दीपक आर्य, जिला कलेक्टर ने बताया कि फसलों के साथ साथ फलदार पौधों की खेती से किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी होगी। फलदार पौधों के रोपण से खेत में बायोमास और पक्षियों का आवागमन बढ़ेगा जिससे भूमि की उर्वरता में सुधार होगा। जिले की समूह से जुड़ी इन महिलाओं के ये प्रदर्शन प्लॉट अन्य महिलाओं को इन विधियों से जुडऩे के लिए प्रेरित करेंगे।

   डॉ. इच्छित गढ़पाले, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत, सागर ने बताया कि मनरेगा के माध्यम से जिले के किसान अपने खेतों में फसलों के साथ साथ फलदार पौधां का रोपण कर सकते हैं। इससे फसल में नुकसान होने की दशा में भी वे फलदार पौधों की बिक्री से आमदनी कमा सकते हैं। साथ ही साथ कुपोषण, एनीमिया जैसे रोगों को संतुलित आहार के माध्यम से दूर किया जा सकेगा।

मप्र : थाई अमरूद की खेती कर रहे किसान…एक पेड़ में 10 किलो तक होता है उत्पादन…

श्योपुर जिले में एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत किसानों की आय दोगुनी करने के लिए थाई अमरूद के बगीचे लगाये जाकर खेती को लाभकारी बनाने की दिशा में कदम उठाये जा रहे है। इसके अंतर्गत वर्ष 2021-22 में थाई अमरूद के उत्पादन हेतु 10 हजार कृषको के यहां अमरूद के बगीचे लगाने के निरंतर प्रयास किये जा रहे है। जिससे थाई अमरूद खेती किसानों के लिए लाभदायक बन रही है।

कलेक्टर  द्वारा एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत ग्रामीण आजीविका मिशन एवं जिला पंचायत के सहयोग से 10 हजार एकड में थाई अमरूद लगाने के लिए किसानों को प्रेरित किया गया। जिसके अंतर्गत थाई अमरूद के उत्पादन हेतु 10 हजार कृषको तक अमरूद की खेती का फायदा लेने में सहायक बन रहे है। एक जिला उत्पाद अतर्गत अमरूद फसल का चयन करते समय किसान अमरूद की फसल के साथ-साथ इंटरक्रोपिंग के रूप में सोयाबीन, सब्जियां, हल्दी, अदरक, मटर, चना की फसल से रबी और खरीफ में 50 हजार रूपये की आय प्राप्त कर अपनी खेती को फायदे का धंधा बनाने में सहयोगी बन सकते है।

   सीईओ जिला पंचायत राजेश शुक्ल द्वारा थाई अमरूद उत्पादन के अंतर्गत किसानों को अमरूद का बगीचा लगाने के लिए विभागीय अधिकारियों के माध्यम से प्रेरित करने की पहल की गई। जिसमें एक एकड में 500-600 पौधे लगवाये जाकर पौधे से पौधे की दूरी 6 फीट एवं लाईन से लाइन की दूरी 12 फीट की जानकारी मैदानी अमले के माध्यम से उपलब्ध कराई गई। थाई अमरूद लगाने के लिए किसान अन्य फसलो की तुलना में अमरूद की फसल से प्रति एकड अधिक आमदनी प्राप्त कर तरक्की का मार्ग प्रशस्त कर सकते है।

डीपीएम आजीविका मिशन सोहनकृष्ण मुदगल ने बताया कि थाई अमरूद का पौधा 12 माह पश्चात ही अमरूद की फसल देने में सहायक बनता है। प्रथम वर्ष में एक पौधे से 10 किलो फल उत्पादन का लाभ लिया जाकर 60 हजार रूपये की वार्षिक आय प्राप्त करने में किसान सहायक बन रहे है। दूसरे वर्ष में 25 किलो फल की पैदावार से 01 लाख 50 हजार रूपये की वार्षिक आय किसान अर्जित कर सकते है। इसी प्रकार तीसरे वर्ष में एक पौधे से 30-35 किलो फल उत्पादन किया जाकर 01 लाख 80 हजार रूपये की वार्षिक आमदनी प्राप्त की जा सकती है।

उप्र : अमरूद और किन्नू के बाग लगाने पर 50 प्रतिशत अनुदान देगी सरकार

उत्तरप्रदेश में अमरूद और किन्नू के फसल को बढ़ावा देने राज्य सरकार ने इसके बाग लगाने पर 50 प्रतिशत अनुदान की बात कही है। आपको बता दें कि इसके लिए आगरा जिले में इसके लिए अभी तक 100 किसानों ने अपना पंजीकरण भी करा लिया है। इसमें राष्ट्रीय एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना में 50 फीसदी अनुदान के लिए आगरा में 85 हेक्टेयर किन्नू की बागवानी और 10 हेक्टेयर अमरूद की खेती का लक्ष्य रखा गया है।

वहीं बताया जा रहा है कि योजना में पौधे लगाने के बाद उद्यान विभाग जियोग्राफिकल टैगिंग कर इनकी मानीटरिंग करेगा। सर्वे के बाद तीन साल में किसान को 50 फीसदी अनुदान उसके खाते में पहुंचेगा। वहीं किरावली के कुकथला गांव में आलू, गेहूं की खेती सीमित कर किसानों ने फुलवारी और बागवानी से अपनी किस्मत संवारनी शुरू कर दी है।
आपको बता दें कि अमरूद की बागवानी भारत में प्राय: सभी राज्यों में की जाती है। परन्तु मुख्यत: बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और आन्ध्रप्रदेश इसके लिए प्रसिद्ध हैं। अमरूद में विटामिन ‘सीÓ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साथ ही अधिक पोषक महत्व के अलावा, अमरूद बिना अधिक संसाधनों के अधिक उत्पादन देता है। इससे किसानों की आमदनी बढ़ती है। अन्य फलों की अपेक्षा अमरूद में कैल्शियम, फॉस्फोरस एवं लौह तत्वों भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। हालांकि अमरूद को किसी प्रकार की जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन अधिक गर्मी इसे प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। वहीं अमरूद की अच्छे उत्पादन के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।