शाकाहारियों में प्रोटीन की पूर्ति के लिए दाल महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यूं तो सभी दालों में प्रोटीन की मात्रा काफी होती है, लेकिन उड़द में सबसे अधिक प्रोटीन पाया जाता है। इसलिए इसके नियमित सेवन से प्रोटीन की मात्रा शरीर में बराबर बनी रहती है। उड़द की खेती के लिए एवं विकास के लिए उपयुक्त तापमान का होना अतिआवश्यक है। ज्यादा वर्षा इसके फूलों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसकी खेती के लिए गर्म मौसम जरूरी है, साथ ही मिट्टी नम होना चाहिए।  

वहीं उड़द के विकास के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान होना चाहिए। ऐसे क्षेत्र जहां वर्षा की मात्रा 700-900 मिमी हो, वहां इसे आसानी से उगाया जा सकता है। चूंकि उड़द को खरीफ एवं रबी दोनों ही प्रकार के मौसम में उगाया जा सकता है। इसलिए इसकी खेती के लिए कोई खास प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होता है, लेकिन हल्की रेतीली, दोमट की भूमि उड़द की खेती के लिए उपयुक्त है। उड़द के लिए वर्षा होने के बाद कम से कम दो से तीन बार हल हलाकर खेतों को समतल कर लेना चाहिए। बारिश की शुरूआत में बुआई करने से इसके पौधों की बढ़ोतरी अच्छी होती है।

उड़द को कतारों में बोने के लिए थोड़ी सावधानी रखें। यानी इनके बीजों के बीच कम से कम 30 सेंटीमीटर की दूरी जरूरी है। वहीं यदि पौधों से पौधों की बुआई कर रहे हैं तो कम से कम 10 सेंटीमीटर की दूरी बनाए रखें। याद रखें, बीजों और पौधों को थोड़ी गहराई में बोएं। दलहनी फसलों मे गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट, जिप्सम आदि का उपयोग करें। खाद को बुआई के समय कतारों मे बीज के ठीक नीचे डालना चाहिये। फसलों में फूल एवं दाने आने की अवस्था में खेत में नमी होना आवश्यक है। इसलिए उड़द में भी इस बात का खास ध्यान रखें। यदि खेत में नमी ना हो तो सिंचाई अवश्य करें। साथ किसी भी फसल को खरपतवार ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए उड़द की फसलों की समय-समय पर निंदाई-गुड़ाई करते रहने चाहिए।

उड़द की फसलों को कई प्रकार के कीट लगने की आशंका होती है। खासकर इसमे क्ली वीटिक, पत्तीमोड़क कीट यानी इल्ली, सफेद मक्खी, पत्तीभेदक इल्लियां, सहित अन्य प्रकार के कीट लगते हैं, इसलिए इसकी रोकथाम आवश्यक है।