आलू की खेती
आलू की खेती

सब्जियों का राजा आलू हर मौसम में उपलब्ध होता है और शायद ही ऐसी कोई रसोई हो जिसमें इसकी अनुपब्धता होती हो यानी हर रसोई में आलू बड़े शान से मौजूद रहता है। आपको बता दें कि आलू की अच्छी पैदावार सामान्य किस्मों में 300 से 350 क्विंटल तथा संकर किस्में 350 से 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। हमारे देश में प्राय: सभी राज्यों में इसकी खेती की जाती है, लेकिन उत्तरप्रदेश इसमें पहले नंबर पर है।

जलवायु और मिट्टी
आलू की खेती के लिए कहा जाता है कि मध्यम शीत जलवायु की आवश्यकता होती है। वैसे मैदानी क्षेत्रों में शीतकाल में इसकी खेती की जाती है। क्योंकि आलू की वृद्धि एवं विकास के लिए अधिकतम तापमान 15- 25 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए। वैसे तो आलू की खेती के लिए रेतीली दोमट या सिल्टी दोमट दोनों ही प्रकार की भूमि उपयुक्त होती है, लेकिन इसे क्षारीय मृदा में भी उगाया जा सकता है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि आलू के कंद मिट्टी के अंदर ही तैयार होते हैं, इसलिए मिट्टी का भुर-भुरा होना बेहद आवश्यक है।

सिंचाई
आलू के बेहतर उत्पादन के लिए पहली सिंचाई बुआई के एक सप्ताह बाद और फिर 8-10 दिनों पर नियमित सिंचाई जरूरी है। 5 मुनाफा वाली किस्में

कुफरी गरिमा
आलू कुफरी गरिमा किस्म से किसानों को एक हेक्टेयर में 300 से 400 क्विंटल तक उत्पादन किया जा सकता है। और इसकी खासयित है कि इसे लंबे समय तक आसानी से स्टोर कर रखा जा सकता है। ये किस्म उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में विकसित की गई है।

कुफरी कंचन
इस किस्म के आलू बंगाल की पहाडिय़ों और सिक्किम में विकसित की गई है। इसका एक हेक्टेयर फसल 200 से 300 क्विंटल तक उत्पादन देता है।

कुफरी गिरधारी
कुफरी गिरधारी किस्म मुख्यत: पहाड़ी क्षेत्रों के उपयुक्त है। इसकी खासियत यह है कि यह पछेती झुलसा प्रतिरोधक है। एक हेक्टेयर में यह 300 से 400 क्विंटल उत्पादन देता है।

कुफरी देवा
आलू की कुफरी देवा किस्म उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयोगी है। इस किस्म के बारे में कहा जाता है कि यह थोड़ा देरी से तैयार होता है, लेकिन इसे भी लंबे समय तक रखा जा सकता है। इसकी खासियत यह है कि इस पर पाला अपना प्रभाव नहीं दिखा सकता है। एक हेक्टेयर में 250 से 280 क्विंटल तक उत्पादन होता है।

कुफरी बादशाह
कुफरी बादशाह किस्म भी अगेती और पछेती झुलसा रोग प्रतिरोधक किस्म है। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित की गई ये किस्म एक हेक्टेयर में 300 से 400 क्विंटल तक उत्पादन देती है।