आयरन से भरपूर पालक की खेती और किस्में…
हरी सब्जी के रूप में पालक का खास महत्व है। पालक में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। खासकर इसमें आयरन काफी मात्रा में पाया जाता है। इसके साथ ही पालक विटामिन ‘एÓ, प्रोटीन, एस्कोब्रिक अम्ल, थाइमिन, रिबोफ्लेविन तथा निएसिन का अच्छा स्त्रोत माना गया है। पालक की सब्जी और पालक का जूस दोनों ही काफी प्रचलित हैं। इसके अलावा पालक के बहुतायत व्यंजन भी बनाए जाते हैं। पालक चाहे आप पका कर खाएं या फिर कच्चा ही, दोनों ही काफी फायदेमंद है। तो चलिए आज बात करते हैं पालक की खेती, मिट्टी, जलवायु और उसकी किस्मों के बारे में….
1. संक्षिप्त परिचय
पालक की खेती के बारे में जानकारी लेने से पहले हम पालक के बारे में कुछ और बातों की जानकारी ले लेते हैं। पालक की खेती देश के लगभग सभी भागों में रबी, खरीफ तथा जायद तीनों मौसम में इसकी खेती बहुतायत में की जाती है। पालक वैसे तो सर्दी के मौसम में बाजारों में उपलब्ध होता है। लेकिन आजकल ये सभी मौसम में बड़ी आसानी से मिल जाता है।
2. जलवायु
सबसे पहले आपको बता दें कि पालक में पाला सहन करने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है। इसलिए देशी पालक को गर्म एवं सर्द दोनों ही जलवायु में बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है।वहीं विलायती पालक पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में सर्दियों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।
3. मिट्टी
पालक की खेती वैसे तो साधारण मिट्टी में भी की जा सकती है। लेकिन यदि जैविक खाद से भरपूर दोमट मिट्टी हो तो इसकी उपज उच्च गुणवत्ता की और उत्पादन भी अच्छा होगा। लेकिन ध्यान रखें पालक की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 7.0 के बीच होना जरूरी है।
3. किस्में
पालक की किस्मों की बात करें तो हमारे देश में दो ही प्रकार के पालक की खेती की जाती है। इसमें एक देशी और दूसरी विलायती है। इसमें भी यदि हम देशी पालक की किस्मों की बात करें तो इसकी दो किस्में हैं- एक लाल सिरा वाली तथा हरी सिरे वाली। देशी पालक की पत्तियाँ चिकनी अंडाकार, छोटी एवं सीधी तथा विलायती की पत्तियों के सिरे कटे हुए होते हैं। इसके साथ ही पालक की कई उन्नत किस्में भी हैं।
5. पालक की उन्नत किस्में
पालक की उन्नत किस्मों में आल ग्रीन, पूसा पालक, पूसा हरित, पूसा ज्योति है। इसके साथ ही पालक की कुछ और किस्में जोबनेर ग्रीन, बनर्जी जाइंट, हिसार सिलेक्शन 23, पालक 51-16, लाग स्टैंडिंग, पन्त का कम्पोजीटी 1 आदि है।
6. तैयारी
पालक की बोआई करने से पहले खेतों को तैयार करना जरूरी होता है। ताकि फसल ज्यादा से ज्यादा और उच्च गुणवत्ता का हो। इसलिए पालक की बोआई से पहले भूमि की 2-3 जुताई करके पाटा चलाकर समतल बना लेना चाहिए। ध्यान रखें पालक में जल निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए, ताकि वर्षा होने में जल का जमाव न हो।
7. बीज की मात्रा
पालक की खेती के लिए साधारणतया 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर आवश्यक है।
8. बोआई का समय
पालक की बोआई क्षेत्रानुसार की जाती है। जैसे मैदानी क्षेत्रों में देशी पालक जून के प्रथम सप्ताह से नवम्बर अंतिम सप्ताह तक, तो विलायती किस्म की बुआई अक्टूबर से दिसम्बर तक बुआई करते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में देशी पालक मार्च मध्य से मई के अंत तक और विलायती पालक मध्य अगस्त उचित समय है।
9. उर्वरक
पालक की खेती के लिए 20 टन गोबर की सड़ी हुई खाद अथवा 8 टन वर्मी कम्पोष्ट प्रति हेक्टेयर अंतिम जुताई के समय खेत में समान रूप से मिट्टी में मिला दे। इसके आलावा 60 किलोग्राम नत्रजन 40 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर दें। इससे पालक की फसल अच्छी होगी।
10. सिंचाई
बीजों के अंकुरण के लिए नमी आवश्यक होती है। अत: खेत में जब नमी की कमी दिखाई दे तो बीज रोपण से पहले सिंचाई अवश्य कर लेनी चाहिए। वहीं गर्म मौसम में हर सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता होती है, वहीं शरद मौसम में 10 से 12 दिन पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
11. खरपतवार नियंत्रण
अन्य फसलों की भांति पालक में भी खरपतावर नियंत्रण के लिए निंदाई गुड़ाई आवश्यक होता है।
बुआई के 20 से 25 दिन बाद प्रथम निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इसके बाद खरपतवार के अनुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। ताकि फसल सुरक्षित रह सके।
12. रोग एवं कीट नियंत्रण
पालक की फसल में प्राय: रोग का प्रभाव नहीं होता है। आप बीज उपचार कर बोए तो रोगों की संभावना बिल्कुल भी नहीं रहती है। पालक की फसल में माहू, बीटल और कैटरपिलर कीटों का प्रकोप देखा गया है। इससे बचाव के लिए 1 लीटर मैलाथियान को 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टयर छिड़काव करना चाहिए।
13. फसल कटाई
पालक बोआई के 25-30 दिन बाद ही आप प्रथम कटाई कर सकते हैं। इसके बाद 10 से 15 दिन के अंतराल में कटाई कर सकते हैं।
आयरन से भरपूर पालक हर कोई खाना पसंद करते हैं और विशेषज्ञ भी इसके जूस या सब्जी की सलाह देते हैं। और एक बात और इसमें विटामिन ‘एÓ, प्रोटीन, एस्कोब्रिक अम्ल, थाइमिन, रिबोफ्लेविन तथा निएसिन भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसे हर मौसम के साथ ही रबी, खरीफ और जायद तीनों ही मौसम के साथ ही इसकी खेती देश के हर हिस्से में की जाती है।
किस्में
पालक की आल ग्रीन, पूसा पालक, पूसा ज्योति उन्नत किस्में हैं। वहीं जोबनेर ग्रीन, बनर्जी जाइंट, हिसार सिलेक्शन 23, पालक 51-16, लाग स्टैंडिंग, पन्त का कम्पोजीटी 1 पालक की अन्य किस्में हैं। इसमें आल ग्रीन पालक के पत्ते गहरे हरे होते हैं और यह 15 से 20 दिन में ही पैदावार देने लगते हैं। वहीं पूसा हरित को पहाड़ी क्षेत्रों में हर मौसम में उगाया जा सकता है। पालक की देशी किस्में गर्म और ठंड दोनों ही मौसम में अच्छी पैदावार देती हैं।
दोमट मिट्टी उत्तम
पालक पाले को सहन कर सकता है। इसलिए इसे पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों में उगाया जा सकता है। दोमट मिट्टी पालक की खेती के लिए अति उत्तम हैं। लेकिन इसमें जैविक खाद की मात्रा होनी चाहिए। और अच्छी उपज के लिए मिट्टी की पीएचमान 6.0 से 7.0 होना चाहिए।
उपयुक्त समय
मैदानी इलाकों में जून से लेकर नवंबर तक और विलायती किस्म के पालक के लिए अक्टूबर-दिसंबर का मौसम उपयुक्त होता है। पालक को बोने के बाद एक महीने में इसकी पहले कटाई की जा सकती है। वहीं कहीं-कहीं पालक 20 से 22 दिन में ही तैयार होते हैं।