ऊर्जा, प्रोट्रीन विटामिन एवं मिनरल से भरपूर बाजरा कई मायने में काफी महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसी फसल है जो किसानों को सीमित वर्षा वाले क्षेत्रों में भी भरपूर उत्पादन देता है। बाजरा के बारे में कहा जाता है कि जहां अन्य फसलें अच्छा उत्पादन नहीं दे पाती हो वहां बाजरा की फसल किसानों को संतुष्ट कर देती है। इसके साथ ही बाजरा में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की वजह से इसकी कीमत और बढ़ जाती है। बाजरा के दानों में 12.4 प्रतिशत नमी, 11.6 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत वसा, 76 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेटस तथा 2.7 प्रतिशत मिनरल पाये जाते हैं। बाजरा का आटा विशेषकर भारतीय महिलाओं के लिए खून की कमी को पूरा करने का एक सुलभ साधन है। तो चलिए आज हम बात करते हैं बाजरा की खेती के बारे में…
मिट्टी
बाजरा की खेती वैसे तो हर प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है। लेकिन यदि आप इसे काली मिट्टी, दोमट एवं लाल मिट्टी में लगाते हैं, उत्पादन अच्छे से अच्छा और ज्यादा मात्रा में होगा।
जलवायु
बाजरा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी आसानी से उगाई जा सकती है। यह सूखा सहनषील एवं कम अवधि (मुख्यत: 2-3 माह) की फसल है। बाजरा की फसल तेजी से बढने वाली गर्म जलवायु की फसल है जो कि 40-75 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रो के लिए उपयुक्त होती है। 500-600 मि.मी. वर्षा प्रति वर्ष वर्षा वाले क्षेत्रों और देश के शुष्क पश्चिम एवं उत्तरी क्षेत्रों के लिए यह उपयुक्त है।
किस्में
बाजरा की कई किस्में बाजार में हैं। लेकिन इसमें भी हाईब्रिड किस्में के.वी.एच. 108 , जी.वी.एच. 905, 86 एम 89, एम.पी.एम.एच 17, कवेरी सुपर वोस, एच.एच.बी. 223 आदि प्रमुख मानी जाती हैं।
खेतों की तैयारी
चूंकि बाजरा की खेती बीजों से ही की जाती है, इसलिए खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए। एक गहरी जुताई के बाद 2-3 बार हल से जुताई कर खेत को समतल करना चाहिए, जिससे खेत मे पानी न रुक सके, साथ मे पानी के निकास की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
बोआई का समय
बरसात के शुरू होते ही बोआई कर लेनी चाहिए। यानी जुलाई का महीना इसकी बोआई के लिए सबसे उपयुक्त है। कतारों में बीज को 2-3 सेमी. गहराई पर बोना चाहिए। लाइन से लाइन 45 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 -15 सेमी. उपयुक्त होती है।
उर्वरक
बाजरा की बोआई के पहले 40 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. स्फुर तथा 20 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। बोने के लगभग 30 दिन पर शेष 40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
बाजरा की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। यह कार्य बीज जमने के लगभग 15 दिन पर कर देना चाहिए। बोनी के 20 – 25 दिन पर एक बार निंदाई कर देनी चाहिए।
सिंचाई
बारिश की फसल होने के कारण इसको सिंचाई की जरूरत कम ही होती है, लेकिन जब बारिश ना हो तो सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। लेकिन ध्यान रखें बाजरा की फसल अधिक देर तक पानी भराव को सहन नहीं कर सकती इसलिए पानी के निकास का उचित प्रबंध करना चाहिए।
रोग एवं कीट नियंत्रण
बाजरा की फसल में मुख्यत: तना छेदक, ब्लिस्टर बीटल, ईयरहेड, केटर पिलर, तनाछेदक मक्खी एवं कड़वा रोग की शिकायत देखी गई है। इसलिए इसकी उचित रोकथाम समय पर लेना ही उचित होता है। अन्यथा फसल का उत्पादन प्रभावित हो सकता है।