आंवला की खेती के फायदे बहुत हैं। इसके साथ ही आंवला की डिमांड हर मौसम में रहती है। आंवला का उपयोग औषधीय गुणों से भरपूर होने का कारण प्राय: लोग करते हैं। प्राकृतिक गुणों से भरपूर यह फल प्रकृति की अनमोल देन है। क्योंकि इसमें विटामिन सी, कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेश्यिम व शर्करा प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। और इसकी उपयोगिता रसोईघर से लेकर अन्य कार्यों में भी होती है, इसलिए आजकल किसान इसकी खेती के लिए उन्मुख हो रहे हैं। रसोई में इसके मुरब्बा, स्कवैश, अचार, कैण्डी, जूस, जैम आदि बनाए जाते हैं, जिसे बच्चे, बूढ़े और सभी आयु वर्ग के लोग बड़े चांव से खाते हैं। वहीं औषधीय गुणों से भरपूर आंवला का उपयोग आयुर्वेदिक दवाईयों, त्रिफला चूर्ण, च्यवनप्राश, अवलेह आदि में होता ही है, साथ ही आंवला सौंदर्य प्रसाधन में काम आता है। इसके फलों से आंवला केश तेल, चूर्ण, शैम्पू इत्यादि बनाए जाते हैं। जिसका बाजार में अच्छा खासा दाम मिलता है। तो आज जानकारी दे रहे हैं आंवला की खेती के बारे में, जिसकी खेती से भरपूर आमदनी की उम्मीद 100 फीसदी है।
शीत और ग्रीष्म दोनों ही जलवायु उपयुक्त
जलवायु के मामले में आंवला अन्य फलों के मुकाबले बेहतर है। क्योंकि इसे आप शीत और ग्रीष्म दोनों ही प्रकार के मौसम में लगा सकते हैं। क्योंकि एक आंवले का पेड़ शून्य डिग्री से अधिकतम 45 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को सह सकता है। वहीं गर्म मौसम पुष्प कलिकाओं के लिए काफी मददगार होता है। वहीं यदि आप विकसित किस्मों की खेती करना चाहते हैं तो इसे उष्ण जलवायु में भी सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है। पाले का इस पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। अत: इस बात का ध्यान रखना जरूरी है।
मिट्टी
वैसे तो आंवला की खेती के लिए हर प्रकार की मिट्टी उपयुक्त होती है, लेकिन यदि आप इसकी खेती बलुई दोमट मिट्टी में करें तो यह अति उत्तम होगा। इसके अलावा कम अम्लीय और उसर में भी इसकी खेती की जा सकती है।
ऐसे करें खेत की तैयारी
चूंकि आंवले के पौधे पेड़ों का रूप धारण करते हैं। इसलिए खेत की तैयारी करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें। ताकि पेड़ों को पर्याप्त जगह मिले, जिससे पेड़ों का विकास अच्छा हो और फल भी गुणवत्ता वाले हों। इसलिए खेत में 8 से 10 मीटर की दूरी और कम से कम एक से डेढ़ मीटर के गड्ढे खोद लेना चाहिए। गड्ढों को भरने के लिए गोबर की खाद, बालू और जिप्सम का प्रयोग करें। याद रखें गड्ढों को भरने के बाद 15 बाद दिनों इसमें पौधा का रोपण करें।
बीज बोआई का तरीका
बीज बोने से पहले इसे कम से कम 10 से 12 घंटे पानी में डुबो कर रखें। इसके बाद जो बीज पानी में डूब जाए, उसे ही बोना चाहिए। मार्च-अप्रैल के महीने में बीजों को जमीन की सतह से थोड़ी उठी हुई क्यारियों में बोये। आप इसे पाली हाउस में भी बो सकते हैं। इसमें एक से डेढ़ महीने में इसमें 10 से 15 सेंटीमीटर के पौधे तैयार हो जाते हैं। यहां से निकालकर इसे कम से कम तीन से चार दिनों तक छाया में रखें। फिर जमीन पर तैयार खेतों में लगाते जाएं।
किस्में
वैसे आंवला की उन्नत किस्मों की बात करें तो तीन पारंपरिक किस्में बनारसी, फ्रांसिस एवं चकैइया ही है। लेकिन कृषि विभाग ने और भी बहुत किस्मों का विकास किया है। इसमें कृष्णा (एन ए- 5), नरेन्द्र- 9 (एन ए- 9), कंचन (एन ए- 4), नरेन्द्र- 7 (एन ए- 7) और नरेन्द्र- 10 (एन ए- 10) आदि प्रमुख हैं। इसकी खेती से आपको उत्पादन भी भरपूर मिलेगा और गुणवत्ता भी।
खाद एवं उर्वरक
आंवला की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए खाद की मात्रा का उपयोग करना चाहिए। इसके लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश तथा गोबर की खाद पौधे की आयु के अनुरूप आप उपयोग कर सकते हैं।
सिंचाई
आंवला के पौधों को जरूर समय-समय पर सिंचाई की जरूरत होती है, लेकिन जब यह एक पूर्ण विकसित पेड़ बन जाए तो सिंचाई की आवश्यता नहीं के बराबर होती है।
कीटों से रोकथाम
आंवले के खेतों में छाल खाने वाले, पत्ती खाने वाले, गांठ बनाने वाला, माहू और शूटगाल मेकर आदि कीट लगने का खतरा बना रहता है। इसलिए इसके नियंत्रण के लिए पर्याप्त उपाय करते रहना चाहिए। यदि छाल वाले कीट हैं तो मेटासिसटाक्स और 10 भाग मिट्टी का तेल मिलकर रुई भीगोकर तना के छिद्रों में डालकर चिकनी मिट्टी से बन्द कर दे। वहीं पत्ती कीट के लिए 0.5 मिली लीटर फ़स्फ़ोमिडान प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करे। इसके साथ ही खेतों में उतक क्षय रोग या रस्ट बीमारी होने की भी संभावना होती है। इसलिए इनके नियंत्रण के लिए 0.4 से 0.5 प्रतिशत बोरेक्स का छिड़काव तीन-तीन महीने के अंतराल में करते रहने चाहिए।
तुड़ाई और भंडारण
आंवला के फलों की परिपक्वता कई कारकों पर निर्भर रहती है। बनारसी एवं कृष्णा किस्मों में परिपक्वता फल लगने के 17 से 18 सप्ताह बाद आती है, जबकि कंचन तथा फ्रांसिस में 20 सप्ताह का समय लगता है। आंवले की तुड़ाई हाथ से करते हैं। लेकिन याद रखें फलों को तोड़ते समय इसके फल जमीन पर ना गिरें, अन्यथा दाग या काले पडऩे की संभावना रहती है। और फल जल्दी खराब हो जाते हैं। वहीं फलों को 10 दिनों तक कम शीत वाले कमरों में रखना चाहिए। वहीं दो माह तक रखने के लिए शीत तापक्रम का खास ध्यान रखना पड़ता है।