अलसी को कीटों से बचाना बेहद जरूरी
अलसी को कीटों से बचाना बेहद जरूरी

तिल के सामन दिखने वाली अलसी पोषक तत्वों का भंडार है। इसमें शरीर के कई गंभीर रोगों से लडऩे की क्षमता होती है। खासकर, उन बीमारियों से जो अनियमित खान-पान और दैनिक दिनचर्या में रूटीन सही नहीं हो पाने के कारण पनपती है। वहीं अलसी की खेती से किसानों को भी काफी लाभ मिलता है। इसलिए किसान इसकी खेती की ओर मुड़ रहे हैं।

अलसी में कीट प्रकोप की संभावना ज्यादा होती है, इसलिए फसल सुरक्षा अति महत्वपूर्ण है। इसमें गालमिज नामक कीट मैगट फसल की खिलती कलियों के अन्दर पुंकेसर को खाकर नुकसान पहुँचाता है जिससे फलियों में दाने नहीं बनते है। वहीं इसकी फसल में बालदार सूँडी रोग भी होता है। ये शुरू में झुण्ड में रह कर पत्तियों को खाती है तथा बाद में पूरे खेत में फैल कर पत्तियों को खाती है। तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है। इसलिए इन कीटों के रोकथाम के लिए प्रभावी नियंत्रण आवश्यक हैं, अन्यथा फसलों को नुकसान पहुंचता है। इसके अलावा अलसी में उकठा, अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा, गेरूई, बुकनी रोग, जैसे कई बीमारियां भी होती है, इसलिए इनका नियंत्रण जरूरी है।
अलसी की खेती के लिए सबसे पहले खेत की तैयारी काफी महत्वपूर्ण होती है। इसकी खेती मटियार व चिकनी दोमट भूमि में की जाती है।

इसके साथ ही दूसरी महत्वपूर्ण बात है इसकी बुआई का समय। अलसी की बुआई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवम्बर का प्रथम सप्ताह तक कर लेनी चाहिए। इससे उत्पादन अच्छा होता है और फसल भी जल्दी ही मिलने लगता है। इसके साथ ये जानना भी जरूरी है कि अलसी की फसल प्राय: असिंचित रूप में बोई जाती है।