अरहर फसलों के कीट और बचाव के उपाय...
अरहर फसलों के कीट और बचाव के उपाय...

अरहर की खेती के लिए बलुई दोमट और दोमट भूमि अच्छी होती है। इसके अलावा जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए तथा हल्के ढालू खेत अरहर के लिए सर्वोत्तम होते हैं। ध्यान रहें लवणीय तथा क्षारीय भूमि में इसकी खेती सफलतापूर्वक नहीं की जा सकती है। अरहर की फसलें की कई किस्में देर से पकती हैं, इसलिए इसकी  बुआई जुलाई के महीने में की जा सकती है। वहीं जल्दी पकने वाली अरहर को इससे एक महीने पहले यानी जून में बोया जा सकता है। जिससे यह फसल नवम्बर के अन्त तक पक कर तैयार हो जाए। इसके साथ ही मेड़ों पर बोने से अच्छी उपज मिलती है। इसके अलावा अरहर की फसलों में कीट प्रकोप की भी आशंका रहती है। इसमें मुख्यत: पत्ती लपेटक कीट, फली की मक्खी, चने का फली बेधक कीट जैसे कीट जल्दी पनपते हैं, इसलिए कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार इसमें समय-समय कीट नियंत्रण के उपाय भी करने चाहिए। ताकि अरहर की खेती से अच्छा उत्पादन हो सके। वैसे हम आज आपको बता रहे हैं अरहर में लगने वाले प्रमुख कीट और उसकी रोकथाम के बारे में…

1. दीमक
अरहर की फसलों में दीमक का प्रकोप अगर देखा जा रहा है तो आप इसकी पहचान कर सर्वप्रथम इसमें कच्चे गोबर का प्रयोग बिल्कुल ना करें। इससे पहले खेतों में फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। साथ ही नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हे0 की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है। खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 2.5 ली0 प्रति हे0 की दर से प्रयोग करें।

2. सफेद गिडार
इसके साथ ही अरहर में सफेद गिडार नामक कीट भी लगता है। इसलिए  गर्मी की गहरी जुताई करके फसलों एवं खरपतवारों के अवशेष को नष्ट कर देना चाहिए। समय-समय पर फसलों को देखते हुए इसके समुचित उपचार आवश्यक होता है।

3. पत्तियों में लगने वाला कीट
अरहर की फसलों पर खड़ी पत्तियों में लगने वाले कीट को प्राय: पत्ती लपेटक कीट के नाम से जाना जाता है। ये पत्तियों को नष्ट कर देता है। इसलिए पर लगातार निगाह रखनी चाहिए और इसके अण्ड समूह एवं इल्लियों को प्रारम्भिक अवस्था में नष्ट करते रहना चाहिए। साथ ही खेत की सफाई का उचित ध्यान रखना चाहिए।

4. फली छेदक कीट
अरहर की फसलों में लगने वाला एक और रोग फली छेदक कीट है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह अरहर की फल्लियों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए इसकी रोकथाम के पर्याप्त उपाय समय रहते कर लेना चाहिए नहीं तो उत्पादन में कमी आ सकती है।