गर्मी का मौसम आते ही बाजार अंगूर से भर जाते हैं। अंगूर कई पोषक, एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल तत्वों से भरपूर होते हैं। इसमें मौजूद पॉली-फेनोलिक फाइटोकैमिकल कंपाउंड हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होने के कारण अंगूर का सेवन जरूरी है। इसका इस्तेमाल शूगर को नियंत्रित करने, अस्थमा, हृदय रोग, कब्ज, हड्डियों के स्वास्थ्य आदि के लिए लाभदायक होती है।
उन्नत किस्में
अंगूर की उन्नत किस्मों में पंजाब एम.ए.सी.एस. पर्पल, परलीट, ब्यूटी सीडलेस, फ्लेम सीडलेस, सुपीरियर सीडलेस, थॉम्पसन सीडलेस हैं। ये फलों के साथ-साथ व्यापारिक दृष्टि से भी काफी फायदेमंद हैं।
मिट्टी
अंगूर की खेती के लिए किसी खास किस्म की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। इसे कई प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है। लेकिन खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5-8.5 होना आवश्यक है।
दिसंबर से जनवरी उपयुक्त
अंगूर की फसल की रोपाई जड़ के कटिंग से की जाती है। इसके लिए दिसंबर से जनवरी का महीना उत्तम होता है। वहीं इसकी रोपाई भी दो विधियों से की जाती है- निफिन और आरबोर।
खाद
सामान्यत: अंगूर के हर बेल में यूरिया 60 ग्राम, और म्यूरेट ऑफ पोटाश 125 ग्राम प्रति बेल अप्रैल-मई के महीने में डालना चाहिए। दो बार यूरिया से स्प्रे करें, पहली स्प्रे फूल खिलने के समय और दूसरी फल बनने के समय करें।
कीटों से देखभाल
अंगूर में भुंडियां कीट लगती है, जो पत्तों को खाकर बेल को खोखला कर देती है। इसके उपचार के लिए मैलाथियोन 400 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। वहीं थ्रिप्स और तेला ये पत्तों और फलों का रस चूसते हैं। इसके लिए मैलाथियोन 400 मिली को 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
तोड़ाई
फसल तैयार हो जाने पर फलों की तुड़ाई कर लें। तुड़ाई के बाद छंटाई बहुत जरूरी है, तभी बाजार में इसके मूल्य अच्छा मिल पाएगा। वहीं छंटाई के बाद फलों को 8 से 10 घंटे तक 4-5 डिग्री तापमान पर ठंडा होने के लिए रखा जाता है। वहीं लंबी दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए अंगूरों की खास पैकिंग की जाती है।